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________________ जैन -गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता १४६ राग-रागिनियों में की गई है। यह कवि का एक उत्तम मुक्तक काव्य है। एक उदाहरण द्रष्टव्य हैं "किते दिन प्रभु समरन विनु ए। परनिंदा मैं परी रसना विषया रस मन मोए ॥१॥ मच्छर माया पंक मे अपने, दुरलभ ज्ञानसु गोए । काल अनादि असंख्य निरंतर मोह नींद में सोए ॥२॥" इस कृति में भक्त हृदय की निश्छल भाव-धारा के साथ उपदेश भी बड़े ही सुन्दर, सरल, हृदयग्राही एवं मर्मस्पर्शी बन पड़े हैं। भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से कवि की यह कृति उत्तम काव्य कृतियों में स्थान पाने योग्य है। ___'महावीर गौतम स्वामी छंद' में कुल मिलाकर ६६ पद्य हैं। सभी पद्य भगवान् महावीर और उनके प्रमुख गणधर गौतम की भक्ति से सम्बन्धित हैं । इसकी रचना संवत् १७४१ से पूर्व ही हो गई थी। इनकी दो हस्तलिखित प्रतियां अभय जैन पुस्तकालय, बीकानेर में सुरक्षित हैं। 'दोहा वावनी' की दो प्रतियां अभय जैन पुस्तकालय, बीकानेर में विद्यमान हैं। पहली प्रति हीरानन्द मुंनि की संवत् १७४१ पौस सुदी १ की लिखी हुई है तथा दूसरी भुवनविगालगणि के शिष्य. फहरचन्द की संवत् १८२१ आश्विन वदी ७ की लिखी हुई है । १ इसमें कुल ५८ दोहे संगृहीत हैं । उदाहरणार्थ एक दोहा देखिए "दोहा वावनी करी, आतम परहित काज । पढत गुणत वाचत लिखत, नर होवत कविराज ।।५८।।" 'कालज्ञान प्रबंध' (पद्यानुवाद) कवि का वैद्यक ग्रंथ है। इसकी रचना सं० १७४१ भाद्रापद शुक्ल १५ गुरुवार को हुई । २ इसमें कुल १७८ पद्य हैं । 'सवैया वावनी' में ५८ सवैया हैं। इसकी रचना संवत् १७३८ मागसर सुदी ६ को हुई थी। ३ ____ 'भावना विलास' में जैनधर्म की बारह भावनाओं का बड़ा ही आकर्पक वर्णन हुआ है। इसमें ५२ पद्य हैं। सवैया छन्द का प्रयोग हुआ है। रचना अत्यधिक रोचक बन पड़ी है। इसकी रचना संवत् १७२७ पौष वदी १० को हई थी।४ १ राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, भाग ४, पृ० ८६ २ जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खंड २, पृ० १२५१-५२ . ३ वही, पृ० १२४६-५० ४ वही, भाग ३, खंड २, पृ० १२४८ (अ) (ब) राजयस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज. भाग ४, पृ० १५२
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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