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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
मट्टारक शुभचंद्र के पदों में भक्तिरस प्रधान है। भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से पदों में साहित्यिकता है। देवेन्द्रकीति शिष्य : (सं० १७२२ आसपास)
आप भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में पद्मनंदि के शिप्य देवेन्द्रकीति के कोई गिष्य थे ।१ इनका विशेष जीवनवृत्त ज्ञात नहीं । भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति का सूरत तरफ की भट्टारक गद्दियों से विशेष संबंध रहा ।२ संवत् १७२२ में रचित इनका एक-एक गुजराती ग्रंथ 'प्रद्युम्न प्रबंध' भी प्राप्त है ।३
'आदित्यवार कथा' इनकी हिन्दी कृति है संवत् १८६८ की लिखित आगरा भण्डार की प्रति में ६० पद्य हैं। यह कृति साधारणतः अच्छी हैं । उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियां द्रष्टव्य हैं
"रवि व्रत तेज प्रताप गइ लच्छि फिरि आइ, कृपा करी धरनेन्द्र और पद्मावति आइ। जहां गये तहां रिद्धि सिद्धि सब ठौर जुपाइ,
मिल कुटम्ब परिवार भले सज्जन मनभाइ ॥" लक्ष्मीवल्लभ : (१८ वीं शताब्दी का दूसरा पाद)
ये खरतरगच्छीय शाखा के उपाध्याय लक्ष्मीकीर्ति के शिष्य थे।४ 'अमरकुमार चरित्र रास' में लक्ष्मीकीर्ति के लिए 'वाणारसी लखमी-किरति गणी' लिखा गया है ।५ इससे सप्ट है कि वे बनारस के निवासी थे। विद्वत्ता के क्षेत्र में इनकी ख्याति अपूर्व रही होगी। इन्ही गुरु के चरणों में लक्ष्मीवल्लभ ने अपनी शिक्षा-दीक्षा आरम्भ की थी। इन्हें राजकवि का भी विरुद प्राप्त था ।६ इनका जन्म नाम हेमराज था।
इनके जन्म, दीक्षा काल, तथा स्वर्गवास आदि की जानकारी प्राप्त नही होती। गुजराती की इनकी विपुल साहित्य सर्जना तथा इनकी हिन्दी रचनाओं पर गुजराती का अधिक प्रभाव देखते हुए इन्हें जैन-गूर्जर कवियों में निस्संदेह स्थान दिया जा सकता है। उनका हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती और संस्कृत चारों भाषाओं पर १. जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड २, पृ० १०६६-६७ । २. डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल, राजस्थान के जैन संत, पृ० ११३ । ३. जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड २, पृ० १०६६ । ४. रत्तहास चौपई, जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खंड २, पृ० १२४६ । ५. जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खंड २, पृ० १२४७ । ६. जैन गूर्जर माहित्य रत्नो, भाग १, सूरत, पृ० २६८ ।