________________
जैन गुर्जर कवियो की हिन्दी कविता
१३६
वर्णन शैली एवं अपनी स्वतंत्र छन्द रचना के कारण भारतीय साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त किये हुए हैं । इस विशाल डिंगल गीत - सम्पति के विकास में मात्र चारणों का ही योगदान रहा हो। ऐसी वात नहीं, अन्य वर्गों के कवियों ने भी पूरा योगदान दिया है । कवि धर्मवर्द्धन के भी डिंगल गीत अपने अर्थ- गांभीर्य के कारण अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । इन गीतों में विषय वैविध्य है । मात्र युद्धवर्णन या विरदगान तक ही सीमित नहीं, इनमें देवस्तुति, प्रकृतिवर्णन निर्वेद एवं राष्ट्रीयता आदि का भी सम्यक निदर्शन हुआ है । ऐसे गीतों में प्रासादिकता कवि की अपनी विशेषता है ।
कवि की छोटी-बड़ी कुछ मिलाकर २६५ रचनाएं ' धर्मवर्धन ग्रंथावली” में में प्रकाशित है' । इनकी अनेक हस्तलिखित प्रतियां भी गुजरात तथा राजस्थान के अनेक शास्त्रभण्डारों में सुरक्षित हैं ।
कवि द्वारा प्रणीत धर्म वावनी, कुण्डलिया वावनी, छप्पय बावनी आदि वावनियां नीति, उपदेश एवं सरल संतोचित असाम्प्रदायिक अभिव्यक्ति की दृष्टि से विशेष महत्व की हैं। धर्म वावनी से एक उदाहरण द्रष्टव्य है
" चाहत अनेक चित्त, पाले नहीं पूरी प्रीत;
केते ही करें है मीत, सोदों जैसे हाट को । छोरि जगदीस देव, सारै ओर ही की सेवु ;
एक ठोर ना रहे, ज्यु मोगल - कपाट को ॥ २७ ॥” कवि को "चौवीसी" रचना में उनके हृदय की अगाध भक्ति धारा फूट पड़ी | प्रभु की वन्दना करने से समस्त पाप दूर हो जाते हैं"नाभि नारद को नन्दन नमतां,
दूरित दशा सव दूरी दली री ।
प्रभु गुण गान पान अमृत को,
भगति सुसाकर मांहि मिली री । "
उसी तरह "चोवीस जिन सवैया", "वारहमासा"; "ओपदेशिक पद" आदि की भाव सम्पत्ति भी विशेष महत्त्व रखती है । इस रचनाओं में भक्ति, वैराग्य, अभिव्यक्ति है । कवि के औपदेशिक निवद्ध संगीत शास्त्र के अनुकूल है ।
उपदेश, विरहानुभूति आदि की सरल पद एवं मुक्तक स्तवन अनेक राग रागिनियों में राग गौड़ी में रचित एक पद दृष्टव्य है ।
"कलु कही जात नहीं गति मन की ।
पल पल होत नइ नइ परणति, घटना संध्या धन की ॥