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________________ १३२ परिचय लंड लिखा हुआ है । उक्त दोनों तथ्यों को ध्यान में रख कर ही शायद मोतीलाल कापडीया ने बानन्दधन का जन्म सम्वत १६७० से ८० के बीच बनुमानित किया है । १ ये आनन्द घन मुजानवाले घनानन्द से भिन्न व्यक्ति थे, कारण (क) इन्होंने घनानन्द के 'मुजान' शब्द का कहीं पर भी प्रयोग नहीं किया। (ब) ये दूसरे मानन्दधन से भिन्न ये क्योकि इसे दूसरे आनन्दधन का साक्षात्कार चैतन्य से हआ था जो हमारे मानन्दघन के जीवन से भिन्न घटना है। इसी प्रकार ये 'कोक मंजरी' के लेखक घनानन्द से भी भिन्न हैं। आनन्दघन के काव्य में विस्तार कम विन्तु गहराई अधिक है। काव्यगन स्तुतियों में कवि के बयाह ज्ञान और अपूर्व शैली के दर्शन होते है। गुजराती की उक्त रचना के अतिरिक्त हिन्दी की भी एक कृति प्राप्त होती है । इन कृति का नान है-आनन्दघन बहोतरी । नाम के अनुनार तो इनमें केवल ७२ पद ही होने चाहि किन्तु विभिन्न प्रकाशित प्रतियों को देखने से पता चलता है कि यह संख्या १०० तक पहुंच गई है। कुछ विद्वानों ने इस संस्था को संदेह की दृष्टि से देखा है लौर नायराम प्रेमी ने तो इसमें प्रक्षिप्तता की स्थिति को स्वीकार करते हुआ कहा है, जान पड़ता है, उसमें बहुत से पद औरों के मिला लिए गये है । बोड़ा ही परिश्रम करने से हमें मालूम हुआ है कि इसका ४२ वां पद "अव हम अमर भये न मरने" और अन्त का पद "तुम ज्ञान विनौ पूरली वसंत" ये दोनों द्यानतरायजी के हैं। इसी तरह जांच करने से औरों का भी पता चल सकता है।" २ "आनन्दघन वहोतरी" के पदों में भक्ति, वैराग्य, उप्रदेश, ज्ञान, योग, प्रेम, ईश्वर, उलटवासियां, आध्यात्मिक रूपक, रहस्य-दर्शन आदि की अपूर्व नुसंयोजित अभिव्यक्ति हुई है। परमतत्व से लो लगाने की बात को कवि ने किस सहजता से व्यक्त किया है, देखिए "ऐसे जिन चरणे चित ला रे मना, ऐसे मरिहंत के गुन गाउं रे मना ॥ ऐसे...॥ उदर भरन के कारणे रे, गोंआ वन में जाय । चारो चरे चिहुँ दिन फिरे, वाकी सुरत वाछल्आ मांह रे।। ऐसे ॥ सात पांच साहेलियां रे हिल मिल पाणी जाय । ताली दिए खड खड हंसे रे, वाकी सुरति गगरआ मांहे रे ॥ ऐसे ॥" १ आनन्दघनना पदो, पृ० १८ २ हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ० ६१ ( पाद टिप्पणी)
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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