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प्रकरण ३ १८ वींन शती कत्र जै गूर्जर कवियों तथा उनकी कृतियों का परिचय
पिछले प्रकरण में हम १७ वीं शती के प्रमुख हिन्दी कवियों का अवलोकन कर चुके हैं । १८वी शती में जैन-गूर्जर कविवों की हिन्दी-साधना उत्तरोत्तर वृद्धिगत होती दिखाई देती है। इस शती में अनेक सुकवियों की सुन्दर रचनाएं हमें समुपलब्ध होती हैं । इस प्रकरण से हम १८ वी शती के प्रमुख कवियों तथा उनके साहित्यिक व्यक्तित्व पर दृष्टिपात करना प्रसंगप्राप्त समझते हैं । आनन्तधन : ( सं १६८० - १७४५)
सच्चे अध्यात्मवादी महात्मा आनन्दधन श्वेताम्बर जैन कवि तथा साधु थे। १ इनका मूल नाम लामानन्द था। जैनों के किसी सम्प्रदाय अथवा गच्छ में इनकी कोई रुचि नही दिखाई देती। २ इनके समकालीन जैन कवि यशोविजय की उपलब्ध "अष्टपदी" में भी उनके रहस्यवादी व्यक्तित्व का ही वर्णन मुख्य है। इनके जन्म आदि को लेकर साहित्य-क्षेत्र में अनेक अटकलें लगाई गई-यथा - आनन्दधन गुजरात के रहने वाले थे, ३ आनन्दधन का जन्म बुन्देलखण्ड के किसी नगर में हुआ था और मेडता नगर के आसपास इनका रहना अधिक हुआ । ४ इनकी प्रथम कृति "आनन्दघन चौवीसी" गुजरात में रचित होने के कारण यह सिद्ध होता है कि आनन्दघन जी या तो गुजराती थे अथवा गुजरात में उनका निवास दीर्घकाल तक रहा होगा।
आनन्दघन जी का समय तो निश्चित-सा ही है । मेडता, नगर में ही यशोविजय जी से उनका साक्षात्कार हुआ था परिणामत: यशोविजय ने उनसे प्रभावित होकर उनकी प्रशंसा मे 'अप्टपदी' रच डाली थी। ५ यशोविजय के समकालीन होने के साय डभोई नगर मे स्थित यशोविजय जी की समाधि पर मृत्यु सम्वत् १७४५
१ मो० द० देसाई. जैन साहित्यनो इतिहा. पृ० ६२२ २ 'गच्छना भेद नयणा नीहारतां, तत्वनी वात करता न लाजे'। ।
आनन्दवन चौवीसी. जैन काव्य दोहन, भाग १. पृ० ८ - ३ डॉ० अम्बाशंकर नागर. गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रंथ, पृ० ३४ ४ मो. मि. कापडीमा, आनन्दवनजीना पदो। ५ बुद्धिसागर के आन्दघन पद संग्रह में प्रकाशित "आनन्दघन अष्ठपदी" ।