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परिचय खंड
रचना की। इस कृति में इनकी साहित्य निर्माण की कला स्पष्ट नजर आती है। १२ मर्ग का यह काव्य अत्यंत लोकप्रिय काव्य रहा है। इसको एक प्रति लामेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में सुरक्षित है ।
__ इनकी हिन्दी रचना "हंसा गीत" १ प्राप्त है। इसका नाम “हंसा तिलक रास" अथवा "हंसा भावना" भी है। ३७ पद्यों में रचित यह एक लघु आध्यात्मिक तथा उपदेश प्रधान रचना है। एक अंश दृष्टव्य है
"ए बारइ विहि भावणइ जो भावइ दृढ़ चितु रे । हंसा । श्री मूल संधि गछि देसीउए वोलइ ब्रह्म अजित रे ॥ हंसा ।। ३६ ॥"
भापा एवं शैली दोनों दृष्टियों से रचना अच्ची है। कृति में रचना सम्वत् का उल्लेख नहीं है । ब्रह्म अजित १७ वीं शताब्दि के संत कवि थे। २ महानन्द गणि : (सं) १६६१ आसपास )
ये तपागच्छ के अकबर बादगाह प्रतियोषक प्रसिद्ध आचार्य हीरविजयसूरि की शिष्यपरम्परा में हुए विद्याहर्ष के शिष्य थे। ३ इनकी रचनाओं पर गुजराती का अत्यधिक प्रभाव देखते हुए ऐमा प्रतीत होता है कि गुजराती ही इनको मातृभाषा थी। संभवतः ये गुजराज के ही रहने वाले हों। इनके सम्बन्ध में विशेष कोई जानकारी नहीं मिलती। इनकी रचित एक कृति "अजना सुन्दरी रास" ४ प्राप्न है जो रायपुर में वि० सं० १६६१ में रची गई थी। यह एक सुन्दर चरित्र कथा है जिस में हनुमान की मां अजना का चरित्र वर्णित है। इसी कयानक को लेकर अनेक गुर्जर जैन कवियों ने काव्य रचनाएं की हैं। अंजना देवी पर अनेक आपत्तियां आती हैं पर वे भगवान जिनेन्द्र की भक्ति से विचलित नहीं होती। इनका सम्पूर्ण जीवन भक्तिमय था । अजना के चरित्र की सब से बड़ी विशेषता यह थी कि उसने गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों का भी विधिवत पालन किया साथ ही वीतरागी प्रभु से प्रेम कर अलोक का भी समान रूप से निर्वाह किया। इनकी भापा राजस्थानी-गुजराती मिश्रित हिन्दी है । विरह के एक मधुर पद द्वारा इसकी प्रतीति कराई जा सकती हैं१ राजस्थान के जैन संत - व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डा० कस्तूरचन्द कासलीवार,
पृ० १७८-८० २ वही, पृ० १६६ ३ गगि महानन्द, अंजनासुन्दरी रात, जैन सिद्धान्त-मवन आरा की हस्तलिखिनु
प्रति । ४ जैन सिद्धान्त - भवन, आरा में इसकी हस्तलिखित प्रति सुरक्षित है। इसमें
२२ पन्ने है।