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जीन गुर्जर कवियों की हिंदी कविता
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संयं सागर : (सं० १६५६ आसपास).
बारडोली के नंत भ० कुमुदचंद्र (सं० १६५६ ) के शिष्य थे। ये ब्रह्मचारी ये और स्वयं एक अच्छे कवि भी थे। ये अपने गुरु को साहित्य निर्माण में सहयोग देते रहते थे। अपने गुरु कुमुदचंद्र की प्रशंमा में इन्होंने अनेक गीत, स्तवन एवं पः लिये हैं। उनका यह गीत एवं पद साहित्य ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है । डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल ने संयम सागर की ७ रचनाओं का उल्लेख किया है । १ भाषाशैली की दृष्टि से रचनाएं साधारण हैं। ब्रह्म गणेश : ( सत्रहवीं शती द्वितीय - तृतीय चरण )
भ० रनकोति ( सम्बत् १६४३ - १५६६ ) भ० कुमुदचंद्र (संवत् १६५६ ) तथा न० अभयचन्द्र (संवत् १६४० (जन्म) - १६८५ - १३२१ ( भट्टारक पद) इन तीनों के ही प्रिय शिष्यों में से थे । इन भट्टारकों की प्रशंसा, स्तवन एवं परिचय के रूा में इन्होंने अनेक गीत लिखे हैं । डॉ कामलीवाल जी के उल्लेख के अनुसार इनके अबतक २० गीत प्राप्त हो चुके हैं। २ इन गीतों तथा स्तवनों में कवि हृदय बरस पड़ा है। म० अभय चन्द्र के स्वागत गान में लिखा उनका एक गीत भापा की दृष्टि से दृष्टव्य है
"आजु भले आये जन दिन धन रयणी। . शिवया नन्दन बंदी रत तुम, कनक कुसुम बधावो मृग नयनी ॥ १॥ उज्जल गिरि पाय पूजी परमगुरु सकल संघ सहित संग सयनी । मृदंग बजावते गावने गुनगनी, अभयचन्द्र पटधर आयो गज गयनी ॥ २ ॥ अब तुम आये भली करी, धरी धरी जय गब्द भविक सब कहेनी। .
ज्यों चकोरीचन्द्र कु इयत, कहत गणेश विशेषकर वचनी ।। ३ ॥". ब्रह्म अजित : ( १७ वीं शती द्वितीय - तृतीय चरण )
ये भ० सुरेन्दकीति के प्रशिष्य एवं विद्यानन्दी के शिष्य थे। ब्रह्म अमित संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे। भट्ठारक विद्यानन्दि बलात्कारगण, सूरत शाखा के के भट्टारक थे। ३ ब्रह्म अजित का मुख्य निवास भृगुकच्छपुर ( भडौच ) का नेमिनाथ चैत्यालय था । ब्रह्मचारी अवस्था में रहते हुए इन्होंने यहीं "हनुभच्चरित" की
१ वही, पृ० १६२ २ राजस्थान के जैन संत - व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल,
पृ० १६२ ३ भट्ठारक सम्प्रदाय पत्र सं० १६४