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________________ परिणय बंड गादियों में रहा होना चाहिए । इनकी रचनाओं में राजस्थाती और गुजगती प्रभाव भी इस बात का प्रमाण है। अव तक की खोजों में इनकी तीन रचनाएं प्राप्त हुई हैं । ? आदित्य बत कथा, २ लवांकुग छप्पय, और ३ नेमिनाथ समवशरण विधि। "आदित्यव्रत कया” – इसमें २२ छंद है । रचना संवत् का उल्लेख नहीं है । "लवांकुश छप्पय” - छप्पय छन्द के ७० पद्यों में रचित यह कवि की बड़ी रचना है । इसकी एक प्रति श्री दिगम्बर जैन मन्दिर डूंगरपुर में, गुटका नं० ३५५ में निवद्ध है। इसे एक सुन्दर खण्डकाब कह सकते हैं। इसकी कथा का आधार लय और कुश की जीवन गाथा है। राम के लंका विजय और जयोध्या आगमन के पश्चात् के कयासूत्र को लेकर साहित्यिक वर्णन ( इस काव्य में ) हुआ है। कृति में शांतरम का निर्वाह हुआ है फिर भी वीर रस के प्रसंग भी कन नहीं । वीर रस प्रधान डिंगल शैली का एक उदाहरण दृष्टव्य है "रण मिसाण वजाय सकल सैन्या तव मेली । चढ्यो दिवाजे करि कटक करि दश दिग भेली ।। हस्ति तुरंग मसूर भार करि शेषज शंको । खडगादिक हथियार देबि रवि शशि पण कंप्यो । पृथ्वी आंदोलित थई छत्र चमर रवि छान्यो । पृथु राजा ने चरे कह्यो, ल्याव्र राम तवे आवयो ।॥१५॥ "व्या के असवार हणी गय वरनि घंटा । रथ की धाच कूचर हणी वली हयनी शरा ॥ लव अंकुग युद्ध देख दगों दिगि नाठा जावे ।। , पृथुराजा बहु वढे लोहि पण जुगति न पावे ॥ वज्र जंघ नप देवतों बल साथे भागो यदा । कुल सील हीन केतो जिन जिते पृथुरा पगे पड्यो तदा ॥२०॥" कृति काव्यत्वपूर्ण है । भाषा राजस्थानी डिंगल है। गुजराती शब्दों के प्रयोग भी प्राप्त हैं। कवि की शेष रचनाओं में "नेमिनाथ समवरण विधि" तथा "आदिनाथ विति" कवि की लत्रु रचनाओं के संग्रह हैं । १ १. राजस्थान के जैन संत - व्यक्तितत्व एवं कृतित्व, डॉ. कस्तुरचन्द कासलीवाल, पृ० १६८
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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