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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता ११७ "मरत-बाहुबली छन्द" १ भरत और बाहुबली के प्रसिद्ध कथानक को लेकर रचित यह कवि कां लघु काव्य है। "आराधना गीत" - यह एक मुक्तक काव्य है। इसमें कुल २८ पद्य है । इसकी एक प्रति सादरापुर में पार्श्वनाथ चैत्यालय के सरस्वती भवन में धर्मभूषण के शिप्य ब्रह्य वाघजी की लिखी हुई सुरक्षित है। २ यह एक सुन्दर भक्ति वाव्य है। "अम्बिका कया" - देवी अम्बिका की भक्ति से संबंधित यह कृति है। इसकी एक प्रति लखनऊ के श्री विजयसेन और यति रामपालजी के पास है । इसकी रचना सं० १६५१ में हुई थी। अब यह कथा प्रकाशित हो चुकी है । ३ __ "पाण्डव - पुराण" - इसकी रचना सं० १६५४ में नौधक में हुई थी। ४ इसकी एक प्रति जयपुर के तेरहपन्थी मन्दिर के संग्रह में सुरक्षित है। भट्ठारक महीचन्द्र : (सं० १६५१ के पश्चात ) ये भट्टारक वादिचन्द्र के शिष्य थे । ५ वादिचन्द्र अपने समय के एक समर्थ साहित्यकार थे । इनका समय सम्बत् १६५१ के आसपास का सिद्ध ही है । अतः भट्टारक महीचन्द्र का समय भी लगभग संवत् १६५१ के पाश्चात् का ही ठहरना चाहिए । इनके संबंध में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं । महीचन्द्र स्वयं भी समर्थ साहित्यकार थे। इनके पूर्व भट्ठारक गुरुओं में वीरचन्द्र. ज्ञानभूपण, प्रभाचन्द्र, तथा वादिचन्द्र आदि राजस्थान के विशेषतः बागड़ प्रदेश तथा गुजरात के कुछ भागों में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जागरण का शंखनाद फूकते रहे । भट्टारक महीचन्द्र का भी संबंध राजस्थान और गुजरात दोनों की ही १ जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड १, पृ० ८०४ - ८०५ २ जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड १, पृ० ८०५ ३ अगरचंद नाहटा. अम्बिका कथा, अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ३-४ ४ प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, दिल्ली, प्रस्तावना, पृ० १४, पादटिप्पणी ३ ५ श्री मूलसंधे सरस्वती गच्छ जाणो, बलात्कार गण वखाणों। श्री वादिचन्द्र मने आणों, श्री नेमीश्वर चरण नभेसू ॥३२॥ तस पाटे मही चन्द्र गुरु थाप्यो, देश विदेश जग बहु व्लाप्यो । श्री नेमीश्वर चरण नमेसू ॥३॥ "नेमिनाथ समवशरण विधि", उदयपुर के खन्डेलवाल मन्दिर के शास्त्र भंडार वाली प्रति ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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