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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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"मधुकर करई गुंजारव मार विकार वहति । कोयल करई पट हूकटा टूकडा मेलवा कंत ॥ मयलयाचल की चलकिउ पुलकिउ पवन प्रचंड ।
मदन महानृप पासइ विरहीन सिर दंड ॥५५॥" मेघराज : (सं० १६६१ आसपास)
कवि मेघराज पार्शचन्द्रगच्छीय परम्परा में श्रवणकृषि के शिष्य थे। इनके सम्बन्ध में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। श्री मो० द० देसाई ने इनकी गुजराती रचनाओं का उल्लेख किया है जिससे यह सिद्ध होता है कि वे गुजराती थे। हिन्दी में इनकी छोटी - मोटी स्तुतियां प्राप्त होती हैं, यथा - पार्श्वन्द्रस्तुति, सद्गुरुस्तुति तथा संयमप्रवहण आदि । स्वच्छ शैली तथा गुजराती-हिन्दी मिश्र भाषा में आपने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है।
"गछरति दरसणि अति आणन्द । श्री राजचन्द सूरिसर प्रतपउ जा लगि हुँ रविचन्द ।।
गुण गछपति ना भवइ मापइ पहुचड़ आस जगीस ॥१५२॥" लालविजय : (सं० १६६२ - ७३) ।
ये तपागच्छीय विजदेवसूरि के शिष्य शुभविजय के शिष्य थे। १ इनके द्वारा रचित इनकी दो गुजराती कृतियों के अतिरिक्त एक हिन्दी कृति "नेमिनाथ द्वादशमास" श्री उपलब्ध है जिसमें परम्परागत शैली में राजमती के विरह को बारहमासे के माध्यम से व्यक्त किया गया है। भाषा प्रवाहमयी है और भाव स्पष्टता से अभिव्यक्ति पा सके हैं।
"तुम काहि पिया गिरनार चढे हम से तो कहो कहा चूक परी, यह वेस नहीं पिया संजम की तुम काँहीकुऐसी विचित्र धरी,
कैसे वारहमास वीतावोगे समझावोगे मुझि याह धरी ॥ १ ॥ वयाशील : (सं० १६६४ - ६७ ) ।
ये अंचलगच्छीय धर्मसूरि की परम्परा में विजयशील के शिष्य थे। इनकी दो गुजराती कृतियों का तथा हक हिन्दी कृति का उल्लेख प्राप्त होता है । २ इस हिन्दी कृति का नाम है । "चन्द्रसेन चन्द्रघेता नाटकीया प्रवन्ध" । इसकी रचना भीनमाल में सम्वत् में हुई थी। ३ यह कृति शान्तिनाथ के चरित्र के आधार हर रचित १ मोह द० देसाई, जैन गूर्जर कविओ, पृ० ४८७ २ मो० द० देसाई, जैन गुर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड १, पृ० ६०२-५ ३ वही, पृ० ६०५
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