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________________ ११४ परिचय पंट "शालिमद्र राम" कवि की उल्लेखनीय साहित्य कृति है । यह आनन्द काव्य महोदधि भौवितक १ में प्रकाशित है । इसमें श्रेणिक राजा के समय में हुए गालिभद्र और धन्ना सेठ की ऋद्धि-सिद्धि और वैराग्यपूर्ण सुन्दर कथा गुफित है, जो जन साहित्य में अत्यधिक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। क्था में सुपात्र दान की महिमा बताई गई है। ____"गज मुकुमार रास" क्षमा धर्म की महिमा पर लिखी कृति है । इसमें बताया गया है कि जाति स्मरण ज्ञान होने से और अपने पूर्वभव की स्मृति आने मे गजकुमार राज ऋद्धि का त्याग कर दीक्षा अंगीकार कर लेता है, और महामुनि वन जाता है। मूकवि जिनराजसरि की चौवीसी और वीसी मे तीर्थकरों की भक्ति में गाये गीतों का संकलन है। इन भक्ति गीतों में कवि की चारित्रिक दृढ़ता, लता तथा भक्तहृदय के निश्छल उद्गार हैं । श्री पभजिन स्तवन में कवि ने प्रभु के चरणकमल तथा अपने भन-मधुकर का बडां ही सुन्दर रूपक खड़ा किया है। इसमें कवि बताता है कि जिसने प्रभु के गुणरूपी मधु का पान किया है वह मौरा उड़ाने पर मी नहीं उड़ता। वह तो तीक्ष्ण कांटों वाले केतकी के पौधे के पास भी जाता है। चौवीसी का यह प्रथम स्तवन द्रष्टव्य है "मन मधुकर मोही रह्यउ, रिऋभ चरण अरविंद रे । उनडायर ऊडइ नहीं, लीणउ गुण मकरन्द रे ॥१॥ रुपइ रूडे फूलडे, अलविन उनडी साइ रे । तीखां ही केतकि तणा, कंटक आवइ दाइ रे ॥ २ ॥ जेहनउ रंग न पालटइ, तिणसु मिलियइ घाइ रे। संगन कीजइन्तेह नउ, जे काम पडयां कुमिलाइ रे ॥३॥" कवि ने आदि तीर्यकर भगवान ऋषभदेव के स्तवन में बालक पभ की महजमुलभ क्रीड़ाओं तथा माता मरुदेवी के मातृत्व का बड़ा ही स्वाभाविक वर्णन किया है जो सूर के बालवर्णन की याद दिलाता है "रोम रोम तनु हुलसइ रे, सूरति पर बलि नाउ रे । कबही मोपइ आईयउ रे, हूँ भी मात कहाऊ रे ॥ ३ ॥ पगि घूघरडी धम धमइरे, ठमकि ठमकि धरइ पाउ रे । बांह पकरि माता कहइ रे, गोदी खेलण आउ रे ॥ ४ ॥ चिक्कारइ चिपटी दीयइरे, हुलरावइ उर लाय रे । । वोलड वोल जु मनमनारे, दंति दोइ दिखाइ रे ॥५॥" -- ( पृ० ३१)
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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