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________________ ११२ परिचय खंड करता है । तदुपरांत उन्हें तत्काल केवलज्ञान प्राप्त होता है और मुक्ति को प्राप्त होते हैं । पूरा का पूरा खण्डकाव्य मनोहर, ललित शब्दों गुथित है। पूरे काव्य में वीर और गांत रस का बड़ा मुन्दर नियोजन हुआ है। भाषा बड़ी सजीव ओर रसानुकूल है "चाल्या भल्ल आखडे बलीया, सुर नर किन्नर जोवा मलीया । काछ या काछ कशी कड तांणी, बोले बांगड बोली वाणी ।।" "आदिनाथ ( ऋषभ ) विवाहलो" भी कवि की एक महत्वपूर्ण कृति है। ११ ढालों वोलो इस छोटे खण्डकाव्य की रचना सं० १६७८ में घोधानगर में हुई थी। इस "विवाहलो" में अपभदेव की मां के १६ स्वप्न देखने से लेकर अपम के विवाह तक का सुन्दर वर्णन है। अन्तिम ढाल में, जिसमें "विवाहला" शब्द सार्थक होता है, उनके वैराग्य धारण करने और मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख है। इनके वर्णन में सहजता और भाषा में सौन्दर्य परिलक्षित हुए बिना नहीं रहता "दिन दिन रूपे दीपतो, कांइ वीजतणों जिमचंद रे । सुर बालक साथे रमे, सहु सज्जन मनि आणद रे ॥ मुन्दर वचन सोहामणां, बोले बाटुअडो वाल रे । रिम झिन वाजे घूघरी, पगे चाले वाल मराल रे ।।" जिनराजसूरि : ( सं० १६४७ - ६६ ) ये खरतरगच्छीय अकबर बादशाह प्रतिवोधक युगप्रधान विन्यात आचार्य जिनचंद्रमूरि के पट्टधर जिनसिंहसूरि के शिष्य तथा पट्टधर थे । १ इनका जन्म वि० सं० १६४७ में हुआ था। इनके पिता का नाम धर्मसिंह और माता का नाम वारलदेवी था । सं० १६५६ मगसर मुदि ३ को बीकानेर में इन्होने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा नाम राजसमुद्र था । २ सं० १६६० में इन्हें वाचक पद मिला। मं० १६७४ में ये आचार्य पद मे विभूषित हुए। ये बहुत बड़े विद्वान और समर्थ कवि थे। तर्क, व्याकरण, छंद, अलंकार कोग, काव्यादि के अच्छे जानकार थे। इन्होंने श्रीहर्ष के नैपधीय महाकाव्य पर "जिनराजि" नामक संस्कृत टीका रची है। इनके द्वारा रचित स्थानांग वृत्ति का उल्लेख भी मिलता है । ३ १६ वी शताब्दी के मस्तयोगी प्रखर समालोचक तथा कवि १ जैन गूर्जर कवियो, भाग १, पृ० ५५३ २ "जिनचद जिनसिंह सूरि मीस राजममुद्रं संत्रुओ।" गुण स्थान बंध विज्ञप्ति स्तवन ३ परम्परा - श्री नाहटाजी का लेख, राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल, पृ० ८३
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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