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________________ ११० परिचय संड कवि का शिप्य परिवार भी बहुश्रुत एवं विद्वान् था। वैसे तो भट्टारकों में अनेक गिप्य हुआ करते थे जिनमें आचार्य, मुनि, ब्रह्मचारी, आर्यिका आदि होते थे। कवि की उपलब्ध रचनाओं में अभयचंद्र, ब्रह्ममागर, कर्मसागर, संयमसागर, जयसागर एवं गगेशसागर आदि शिप्यों का उल्लेख है जो हिन्दी संस्कृत के बड़े विद्वान तथा उत्तम कृतियों के सर्जक भी है । अभयचंद्र इनके पश्चात् भट्टारक बने। कुमुदचंद्र की अब तक की प्राप्त रचनाओं में २८ रचनाएँ, प्रचुर स्फुट पद तथा विननियां प्राप्त है । १ कवि की विशाल माहित्य मर्जना देखते हुए लगता है ये चिंतन, मनन एवं धर्मोपदेश के अतिरिक्त अपना पूरा समय साहित्य-सजन में ही लगाते थे। कवि की रचनाओं में राजस्थानी और गुजराती जा अत्यधिक प्रमाव है। सरल हिन्दी में भी इनकी कितनी ही रचनाएँ मिलती है। प्रमुख रचनाओं में "नेमिनाथ बारहमामा", "नेमीश्वर गीत", "हिन्दोलना गीत", "वणजारा गीत", "दशधर्म गीत", "सपृव्यसन गीत", "पार्श्वनाय गीत", चिंतामणि पार्श्वनाथ गीत", आदि उल्लेखनीय है । इनके पद भी अनेक उपलब्ध है जो दि० जैन अ० क्षेत्र श्री महावीरज़ी, साहित्य शोध विभाग, जयपुर से प्रकाशित “हिन्दी पद संग्रह" में डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल के संपादकतत्व में प्रकाशित है। नेमिनाथ के तोरणद्वार पर आकर पशुओं की पुकार सुन वैराग्य धारण करने की अद्भुत घटना से ये अत्यधिक प्रभावित थे । यही कारण है कि नेमि-राजुल प्रसंग को लेकर कवि ने अनेक रचनाएं की हैं । ऐमी रचनाओ में "नेमिनाथ बारहमासा", "नेमीश्वरगीत", "निमिजिनगीत" आदि के नाम विशेप उल्लेखनीय है । "वणजारा गीत" मे कवि ने संमार का सुन्दर चित्र उतारा है। यह एक रूपक-काव्य है, जिनमें २१ पद्य है । "शीनगीत" में कवि ने सच्चरित्रता पर विगेप बल दिया है । कवि ने बताया है - मानव को किमी भी दिशा में आगे बढने के निए चरित्र-बल की ग्वाम आवश्यकता है । 'साधुसंतों एव संयमियों को तो स्त्रियों ने दूर ही रहना चाहिए' आदि का अच्छा उपदेश दिया है । कुमुदचंद्र की विनतियां तो भक्तिरस मे आप्लुत है। कवि की इन विनतियों का संकलन मन्दिर ठोलियान, जयपुर के गुटका नं० १३१ में प्राप्त है । इस गुटके का लेपन काल सं. १८७६ दिया गया है। १ गजम्यान के प्रमुख नंत ( पांडु लिपि ), डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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