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________________ जोन गुर्जर कवियों की हिंदी कविता "देवराजवच्छराज चउपई" ८४ पद्यों की रचना है । इसमें किसी राजा के पुत्र वच्छराज और देवराज की कथा है। कुमुदचन्द्र : (सं० १६४५ - १६८७) इनका जन्म गोपुर ग्राम में हुआ था। पिता का नाम सदाफल और माता का नाम पदमावाई था। इनका कुल मोढवंश में विख्यात था। १ मोढ गुजराती वनिया होते थे। सम्भव है कुमुदचंद्र के पूर्वज गुजरात के निवासी हों और फिर राजस्थान के गोपुर ग्राम में आ वसे हों। उनकी हिन्दी रचनाओं पर राजस्थानी गुजराती का विशेष प्रभाव देखकर यह अनुमान दृढ़ होता है । कुमुदचंद्र भट्टारक रत्तकीति के शिष्य थे। ये बचपन से ही उदासीन और 'अध्ययनशील थे। युवावस्था से पूर्व ही इन्होंने संयम ले लिया था। अध्ययनशील मस्तिष्क के कारण इन्होंने शीघ्र ही व्याकरण, छंद, नाटक, न्याय आगम एवं अलंकार शास्त्र का गहरा अध्ययन कर लिया । घोम्मटसार आदि ग्रंथों का इन्होने विशेप अध्ययन किया था। २ भट्टारक रत्नकीति अपने शिप्य के गहन ज्ञान को देखकर मुग्ध हो गये। उन्होंने गुजरात के वारडोली नगर में एक नया पट्ट स्थापित किया। यहां जैनों के प्रमुख संत ( भट्टारक ) पद पर कुमुदचंद्र को सम्वत् वैशाख माय में अभिषिक्त कर दिया । ३ इस पद पर वे वि० सं० १६८७ तक प्रतिष्ठित रहे । ४ बारडोली गुजरात का प्राचीन नगर तथा अध्यात्म का केन्द्र रहा है। कुमुदचंद्र ने यहाँ के निवासियों में धार्मिक चेतना जाग्रत कर उन्हें सच्चरित्र, संयमी एवं त्यागमय जीवन की ओर प्रेरित किया। १ मोढवंश शृङ्गार शिरोमणि, साह सदाफल तात रे। जायो यतिवर जुग जयवंतो, पद्माबाई सोहात रे ।। -धर्मसागर कृत गीत । २ अनिशि छंद व्याकरण नाटिक भणे, न्याय आगम अलंकार । वादी गज केसरी विरूद वास वहे, सरस्वती घच्छ सिणगार रे ।। - वही, धर्मसागर कृत गीत ३ सम्बत् सोल छपने वैशाखे प्रगट पयोधर थाव्या रे । रत्नकीर्ति गोर बारडोली वर सूर मंत्र शुभ आव्या रे ।। माई रे मनमोहन मुनिवर सरस्वती गच्छ सोहंत । कुमुदचंद्र भट्ठारक उदयो भवियण मन मोहंत रे ॥ गणेश कवि कृत "गुरु स्तुति” । ४ वही
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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