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परिचय खंड
कवि की अत्यन्त लघु कृतियाँ अन्य हैं जो साधारण कोटि की है। अभयचन्द्र की कृतियों का महत्व भाषा के अध्ययन की दृष्टि से अधिक है। कवि की भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है। अभयचन्द्र की समस्त रचनाएं काव्यत्व, शैली एवं भापा की दृष्टि से साधारण ही हैं। समयसुन्दर महोपाध्याय : ( सं० १६४६ - १७००)
___ अन्त: साक्ष्य के आधार पर ज्ञात होता है कि कदि समयसुन्दर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के वृहद् खरतरगच्छ में अवतरित हुए थे तथा सकलचन्द्रमणि के शिष्य थे । १ राजस्थानी व गुजराती साहित्य के सब से बड़े गीतकार, व्याकरण, अलंकार, छन्द, ज्योतिप तथा जैन साहित्य आदि के प्रकाण्ड पण्डित कवि समयसुन्दर का जन्म मारवाड के साचौर ( सत्यपुर ) गांव की पोरवाल जाति में हुआ था। पिता का नाम रूपसी और माता का नाम लीलादे था। २ इनका जन्म १६२० सम्वत् में अनुमानित है । ३ वादी हर्पनन्दन द्वारा रचित "समयसुन्दर गीत" में वर्णित" नवयौवन भर संयम सग रह्यो जी" के आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि इन्होंने तरुणावस्था में ही संन्यास ग्रहण कर लिया था। इनको दीक्षित करने के कुछ वर्षों के पश्चात् ही सकलचन्द्र का देहावसान हो जाने के कारण आपका विद्याध्ययन वाचक महिमराज और महोपाध्याय समयराज के सान्निध्य में हुआ। अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और असाधारण प्रतिभा के बल पर आप "गण" और तदुपरान्त महोपाध्याय के पद पर पहुंचे थे । इनके ४२ शिष्यों में से इनके अन्तिम समय में किसी ने भी माथ नहीं दिया जिसका इन्हें अन्त तक दुःख वना रहा फिर भी ये भाग्य को दोप दे कर अपने को सान्तवना देते रहे। कवि की कृतियों व रचना-वों को देखते हुए यह कहना उचित ही होगा कि इन्होंने अपना अन्तिम समय अहमदावाद (गुजरात) में ही रह कर विताया और सम्वत् १७०२ चैत्र शुक्ल १३ को अपनी इहलीला समाप्त की । ४
__कवि समयसुन्दर ने साठ वर्ष तक निरन्तर साहित्य-साधना कर भारतीय वांगमय को समृद्ध किया। इनकी सैकड़ों कृतियों को व्यान में रख कर ही शायद १ सम्वत् १६४६ में रचित "अर्थरत्नावली वृत्ति” सहित "अष्टलक्षी" की प्रशस्ति,
पीटरसन की चतुर्थ रिपोर्ट न० ११, पृ० ६४ २ "मातु "लीलादे" , "रूपसी" जनमिया एहवा गुरु अवदातो जी।" देवीदास कृत ___ "समयसुन्दर गीत" ३ सं० अगरचन्द नाहटा, सीताराम चौपाई, भूमिका, पृ० ३४ ४ रांजसोम, महोपाध्याय समयमुन्दरजी गीतम् ।