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जैन गुर्जन कवियों हिन्दी कविता
यह कहा गया था । " समय सुन्दरना गीतडा, भीतां परना चीतरा या कुम्भे राणाना भींतढा” । इनकी लघु कृतियां बीकानेर से प्रकाशित “समयसुन्दर - कृति - कुसुमांजलि" में समाविष्ठ हैं । विभिन्न विद्वानों के द्वारा इनकी अनेक कृतियों कां उल्लेख किया गया है । इनमें से ज्ञात कृतियों के आधार पर यहां कवि की काव्य - साधना पर प्रकाश डालने का यत्न किया गया है ।
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कवि ने देशी भाषाओं में काव्य-रचना करने का आरम्भ " स्थूलिभद्ररास" से किया | इस प्रथम कृति में ही कवि ने अपनी काव्य-कला और प्रतिभा का सुन्दर दर्शन कराया है । कवि का " वस्तुपाल तेजपाल रास" ऐतिहासिह एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । किन्तु कवि की सर्वश्रेष्ठ कृति "सीताराम चौपाई" है जिसमें जैन परम्परानुसार रामकथा है । इस वृहत्काव्य में ३७०० श्लोक है । इसके नायक स्वयं राम हैं और इसका उद्देश्य है रामगुण-गान । छंदों की विविधता, रसों का पूर्ण परिपाक, सम्बन्ध सुत्रात्मकता को देखते हुए इसे प्रबन्ध काव्यों की कोटि में सहज ही समाप्टि किया जा सकता है । इनमें परम्परागत शैली पर शृङ्गार व नखशिखवर्णन तथा वियोग की अनेक अंतर्दशाओं के सुन्दर चित्र वर्तमान हैं । राम का विलाप और सीता के गुणों का प्रकाशन कितने शहज रूप में हुआ है—
"प्रिय भाषिणी, प्रीतम अनुरागिना, सघउ घर सुविनीत । नाटक गीत विनोद सह मुझ, तुभन विणाभावइ चीत ॥ सयने रम्भा विलासगृह कामकाज, दासी माता अहिउ नेह | मंत्रिवी बुद्धि निधान धरित्री क्षमानिधान, सकल कला गुण नेह ||" "सीताराम चौरई" का "नीता पर लोको वाद" तथा "राम-लक्ष्मण - सम्वाद" और " नलदवदंती रास का करसम्वाद" ये तीनों प्रसंग कवि की काव्य- कला एवं प्रतिभा के सुन्दर प्रमाण हैं । "चार प्रत्येक बुद्ध रास" और " मृगावती चरित्र” में आने वाले युद्ध तथा प्रत्येक राग में रविन युद्धगीत समयमुन्दर की साहित्य को अमूल्य देन हैं ।
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राम साहित्य की भांति ही कवि का भक्ति साहित्य भी महत्वपूर्ण है । इनमें कवि की उत्तम संवेदना तथा सर्वोच्च धर्म-भावना का प्रकाशन हुआ है । इनके द्वारा रचित धर्म, कर्म आदि छत्तीनियों में इनकी बहुश्रुतता एवं गहन ज्ञान के संकेत मिलते निलते हैं । इस प्रकार इनके द्वारा रचित गीतों में लय-वैविध्यं शब्दमाधुर्य, सुन्दर प्रास योजना, अनेक लोकप्रिय ढालें, सरल तत्वज्ञान, उत्कट संवेदनशीलता आदि के दर्शन होते हैं हैं । इनमें भक्ति और शृङ्गार साथ-साद चले हैं । १७ वीं शताब्दि का