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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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खूब विहार किया और जन-सावारण में धार्मिक जाग्रति उत्पन्न की। डॉ० कासलीवाल जी के उल्लेख के अनुसार सम्वत् १६८५ की फाल्गुन सुदी ११ सोमवार के दिन बारडोली नगर में इनका पट्टाभिषेक हुआ और इस पर ये सम्वत् १७२१ तक बने रहे । १
इन्होंने संस्कृत और प्राकृत के साथ न्याय - शास्त्र, अलंकारशास्त्र तथा नाटकों का गहन अध्ययन किया था । २ इनके अनेक शिष्य थे जो इन्हीं के साथ सर्वसामान्य में आध्यात्मिक चेतना जगाया करते थे । इन शिष्यों ने भ० अभयचन्द्र की प्रशंसा में अनेक गीतों की रचना की है । इनके प्रमुख शिष्यों में दामोदर, वर्मसागर, गणेश, देवजी आदि उल्लेखनीय है ।
इस प्रकार इनके विषय में अनेक प्रशंसात्मक गीतों में कवि के व्यक्तित्व, प्रतिभा एवं लोकप्रियता के साथ साहित्य प्रेम की जानकारी मिल जाती है । कवि की रचनाओं में लवुगीत अधिक हैं । अवतक की इनकी १० कृतियाँ प्राप्त हो चुकी हैं । ३ इनमें प्रमुख कृतियों का परिचय दिया जा रहा है ।
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"वामुपूज्य जी धमाल" कवि की लघु रचना है, जिसमें वासुपूज्य तीर्थकर का मानवरूप में निरूपण है । " चन्दागीत " ४ कालिदास के मेघदूत की शैली पर रचित एक लघु विरह काव्य है । इसमें राजुल चन्द्रमा से अपने विरह का वर्णन करती है और चन्द्रमा के माध्यम से अपना संदेश
नेमिनाथ के पास भेजती है" विनय करी राजुल कहे, चन्दा वीनतडी अव धारो रे । उज्जलगिरि जई वीनवो, चन्दा जिहां छे प्राण आधार रे ॥ १ ॥ गमने गमन ताहरू स्वङ्ग, चन्दा अमीय वरपे अनन्त रे ।
पर उपगारी तू भलो, चन्दा वलि वलि वीनवु संत रे || २ ||"
" सूखडी" - ३७ पद्यों की इस लघु रचना में तीर्थकर गान्तिनाथ के जामोत्सव
पर बनाये गये विविध व्यंजनों, शाकों तथा सूखे मेवों का वर्णन कवि ने किया है ।
१ राजस्थान के जैन संत व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचन्द कामलीवाल, पृ० १४८
२ तर्क नाटक आगम अलंकार, अनेक शास्त्र म यां मनोहर ।
भट्टारक पद ए हने छाने, जेहवे यश जग मां वास गाजे ॥
-धर्म सागर कृत एक गीत ।
३ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृ० १५१
४ प्रकाशित, वही, पृ० २७५
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