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________________ परित्रय वंड उदयराज-उदो : (सं. १६३१ - १६७६ ) ये बरतरगच्छीय भावहर्ष के शिप्य भद्रमार के पुत्र तथा धावक-गिप्य थे । १ इनका जन्म सम्वत् १६३१ से हुआ था । २ "चन्दन मलयागिरि कथा के प्रणेता तथा कवि भद्रसार या भद्रसेन का सम्बन्ध गुजरात से रहा ही है. जिसका उल्लेख हो चुका है। उदयराज का भी सम्बन्ध गुजरात से अवश्य होना चाहिए। उनकी रचनाओं में प्रयुक्त कुछ गुजराती प्रयोग भी इस बात का प्रमाण है। श्री नाहहाजी ने भी इस बात को स्वीकारा है । ३ इनकी निम्न रचनाएं प्राप्त हैं- ४ . (१) मगन छत्तीसी मं० १६६७, भांडादई । (२) गुण बावनी सं. १६७६ बबेरइ । (३) वैद्य विरहणी प्रबंध. (४) चौविस जिन मवैये. तथा (५) ५०० दोहे । इनके दोहे. कवित्त तया बावनी विगेप प्रमिल है। मगन छत्तीसी : (रचना सं० १६६७ फाल्गुन वदी १३ शुक्रवार को मांडावई नामक स्थान पर ) ५ कवि का मानना है कि भगवान जिनेन्द्र की भक्ति और प्रीति सांसानिक सम्बन्धों और मानापमानों को दूर करने में पूर्ण समर्थ है । "प्रीति आप परजले, प्रीति अवरां पर जाल । प्रीति गोत्र गालवै, प्रीति सुधवंश विरालै ।। आदि ॥" इसका गावा-प्रवाह और भाव-प्रौढता कवि की उन्नत काव्यशक्ति का परिचातक है। गुण बावनी : ( रचना सं. १६७६ वैशाख मुदी १५ के दिन बवेरड में हुई थी ) ६ ५७ पद्यों के इस काव्य में पावण्ड निराकरण और अध्यात्मसम्बन्धी कवि के विचार अभिव्यक्त हुए हैं। कृति के प्रारम्भ में ही "प्रणव अक्षर" रूप ब्रह्म को कवि ने नमन किया है १ जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खंड १, पृ० ९७५ २ राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, भाग २, पृ० १४२ ३ उनका हस्तलिखित मेरे नाम एक पत्र । ४ परंपरा में "राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल", अगरचन्द नाहटा, पृ० ८६ ५ वदि फागुण शिवरात्रि, श्रवण शुक्रवार ससूरत । मांडावाह मंझारि, प्रभु जगमाल पृथी पति ।। मगन छतीमी, पद्य ३७ । ६ गुण दावनी, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य ५६, नाहटा संग्रह से प्राप्त । ;
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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