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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता १०१ जिसमें - वासवदत्ता के आदर्श पर प्रेम-निरुपण है । लेखन-मार्गशीर्ष सुदी १० गुरुवार १६४२ ) १ इनकी प्रमुख रननाएं हैं । स्थूलिभद्र मोहन वेलि-इसमें स्थूलिभद्र एवं कोश्या का कथानक वणित है। भापादि की दृष्टि से "स्थूलिभद्र मोहन वेलि" से कुछ पंक्तियां यहां उद्धृत हैं "मन का दुख सुख कहन कु - इकहि न जु आधार । हृदय तलाव रु दुग्य भयु, तू कुदृइ विन धार ॥५६॥ इकतिइं सब जग वेदना, इक तिइं विशुरन पीर । तोह समान न होत सखी, गोपद सागर नीर ॥६५॥" श्रृङ्गार के वियोग का बड़ा सुन्दर वर्णन हुआ । प्रकृति वर्णन भी मनोरम है । भापा अलंकृत, ललित एवं प्रवाह-युक्त है। भट्टारक सकल भूषण : ( १७ वीं शती प्रथम व द्वितीय चरण ) ये भट्ठारक शुभचंद्र ( संवत् १:४०-१६१३ ) के शिप्य थे । संवत् १६२७ में रचित अपने संस्कृत ग्रंथ "उपदेशरत्नमाला" से यह स्पष्ट है कि ये भ० सुमतिकीर्ति के गुरू भ्राता थे । २ अपने गुरु शुभचन्द्र को अपने "पान्डवपुराण" (संवत् १६०८ रचनाकाल ) तथा “करकन्डु चरित्र" ( रचना सम्वत् १६११) की रचना से इन्होंने सहयोग दिया था । ३ . इनकी हिन्दी रचनाओं का पता डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल जी को सर्वप्रथम आमेर शास्त्र भन्डार, जयपुर से मिला है। उन्होंने इनकी निम्न हिन्दी लवु रचनाओं का उल्लेख किया है । ४ (१) सुदर्शन गीत (सेठ सुदर्शन के चरित्र पर आवृत चरित्रप्रधान कथाकाव्य), (२) नारी गीत ( उपदेशप्रधान लघुकाव्य ) तथा पद। सकलभूपण की भाषा पर गुजराती का विशेष प्रभाव है । रचनाएं साधारणतः अच्छी हैं। १ मागशिर सुदि दशमी गुरी, सम्वत् सोल विताल । जयवन्त घूलिमद गावतइं, दिन दिन मंगल माल ।। २१५ ।। २ तस्याभूच्च गुरुभ्राता नाम्ना सकलभूषण: । सूरिजिनमते लीनमनाः संतोष पोपकः ॥ ८ ॥ "उपदेश रत्नमाला" ३ श्री मत्सकलभूषेण पुराणे पाण्डवे कृतं । साहायं येन तेना ऽत्र तदाकारिस्वसिद्धये ॥ ५६ ॥ "करकण्डु चरित्र" ४ राजस्थान के जैन संत - व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल, पृ० २०७
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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