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________________ परिचय खंड "नीचनी संगति परिहरो, धारो उत्तम आचार । दुर्लभ भव मानव तणो, जीव तू आलिमहार ।। ४० ॥" "नेमिनाथ रास"-इसमें नेमिनाथ और राजुल का मुप्रसिद्ध कथानक है । इसकी रचना संवत १६७३ में हुई। १ रचना माधारण है। "चित्तनिरोध कथा" पद्यों की यह उपदेशात्मक लघु कृति है। इसमें चित्तनिरोध का उपदेश दिया है। इसकी प्रति भी उदयपुर वाले गुटके में संकलित है। "वाहुबलि वैलि" विभिन्न छन्दों में रचित कवि की एक लघु कृति है । इमकी भी उदयपुर से प्राप्त एक प्रति का उल्लेख डॉ० कासलीवाल जी ने किया है । २ भ० वीरचन्द्र की ये कृतियां उनकी प्रतिभा, विद्वता एवं साहित्यप्रेम की ज्वलंत प्रमाण हैं। जयवंतसूरि : ( १७ वीं शताब्दी प्र म चरण ) थे तपागच्छीय उपाध्याय विनयमण्डन के शिष्य थे । ३ सम्बत् १५८७ वैशाख कृष्गा ६ रविवार को शत्रुजय पर ऋपभनाथ तथा पुण्डरीक के मूर्ति-प्रतिष्ठापन समारोह में आचार्य विनयमण्डन के साथ ये भी उपस्थित थे । ४ इनका दूसरा नाम गुण सौभाग्य भी था । ५ श्री देसाईजी ने इनकी कृतियों का परिचय दिया है । ६ इनकी "नेमिराजुल वार मास वेल प्रवन्ध", "सीमन्धर चन्द्राउला" तथा "स्यूलिभद्र मोहनवेलि" आदि रचनाएं सरल राजस्थानी मिश्रित हिन्दी में है। "नेमि राजुल वार मास वेल प्रवन्ध" ७७ छन्दों में परम्परागत पद्धति पर राजमती के विरह-वर्णन पर आधारित बारहमासा है । "सीमन्धर चन्द्राउला" (भक्तिकाव्य ), "स्थूलिभद्र मोहन वेलि" (स्थूलिभद्र-कोश्या पर नावृत स्थानक है १ संवत सोलताहोतरि, श्रावण सुदि गुरुवार । दशमी को दिन रूपडो, रास रच्चो मनोहर ॥ १७ ॥ उदयपुर के अग्रवाल दि० जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार वाली प्रति से। २ राजस्थान के जैन संत - व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल पृ० ११२ ३ श्री विनयमण्डन उवझाय अनोपम तपगछ गयणेचन्द्र । तसु सीस जयवंत सूरिवर, वाणी सुणंता हुई आणंद ।। ७ ।। ४ मुनि जिन विजय कृत शत्रुन्जय तीर्योद्वारा की प्रस्तावना ५ गुण सोमाग सोहामणि वाणी धउ रंगरेलि ६ जैन गूर्जर कविओ, भाग १, पृ० १६३-६८, तथा भाग ३ खन्ड-१, पृ० ६६६-७२
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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