________________
जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
सर्जक सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं । यहाँ इनकी प्रमुख रचनाओं का परिचय दिया जा रहा है ।
वीर विलास फाग :
२२ वें तीर्थकर नेमिनाथ के जीवन का एक प्रसंग लेकर १३७ पदों में रचित कवि का यह एक खण्ड-काव्य है । इसकी एक प्रति उदयपुर के खण्डेलवाल दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है । १ कृति में रचनाकाल का कहीं उल्लेख नहीं है ।
फाग बड़ा ही सरस, सुन्दर एवं काव्यत्व पूर्ण है । राजुल की विरह दशा का वर्णन अत्यंत हृदय द्रावक बन पड़ा है
"कनकमि कंकण मोडती, तोडती मिणिमिहार ।
लू चती केश - कलाप, विलाप करि अनिवार ॥ ७४ ॥ नयणि नीर काजलि गल, टलवलि भामिनी भूर । किस करू कहि रे माहेलडी, विहि नडि गयो मझनाह ॥७१ ||
अब यह कृति "राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व दवं कृतित्व" में प्रकाशित
Eε
है ।.२
जम्बूस्वामी वेल :
इसकी एक जीर्ण प्रति उदयपुर के खण्डेलवाल दिगम्बर जैनमन्दिर के शस्त्र रचना में जम्बूस्वामी का चरित्र वर्णित गुजराती मिश्रित राजस्थानी है । डिंगल
मंडार से प्राप्त है । ३ कवि की इस दूसरी है | रचना साधारण है । बेलि की मापा का प्रभाव भी स्पष्ट है ।
*
"जिन आंतरा" ४ कवि की यह लघु रचना साधारण कोटि की हैं । "सीमंधर स्वामी गीत" में कवि ने सीमन्वर स्वामी का स्तवन किया हैं । "संवोध तत्ताणु" दोहा छन्द में रचित ५७ पद्य की यह एक उपदेशात्मक कृति है । इसकी प्रति मी उदयपुर के उपर्युक्त संग्रह में संकलित है । इन शिक्षाप्रद दोहों में कवि के सुन्दर भावों का निर्वाह हुआ है
१ राजस्थान के जैन संत पृ० १०७
२ वही, पृ० २६६-२७०
-
व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल,
वही, पृ० १०६
४ राजस्थान के जैन संत-व्यक्ति एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृ० ११०