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परिचय खंड
"पंडित हेमे प्रेरया घणु वगाय गने वीरदास । हासोट नगर पूरो हुवो, धर्म परीक्षा रास ॥" संवत् सोल पंचवीममे, मार्गसिर मृदि वीज वार ।
रास रमडो रलियामणो, पूर्ण किवो के सार ॥" "जिनवर स्वामी वीनती" २३ छंदों में रचित एक स्तवन है । रचना नाधारण कोटी की है । "जिह्वादन्त विवाद" ११ छंदों में रचित एक लबु रचना है। इसमें कवि ने जिह्वा और दांत के बीज के विवाद का मरल मापा में वर्णन किया है। "वसंत विलास गीत" की एक प्रति आमेर शास्त्र भण्डार के एक गुटके में निबद्ध है। २२ छंदों की इस रचना में कवि ने नेमिनाथ राजुल के विवाह-प्रसंग को लेकर सुन्दर एवं सरल अभिव्यक्ति की है । इस गीत में वसंतकालीन नैगिक सुपमा का भी बड़ा विस्तृत वर्णन हुआ है । वसंत विलास गीत साधारणतः अच्छी रचना है।
कवि की अन्य रचनाए लघु हैं । गीत, पद एवं संवाद रूप में ये लघु रचनाएं काव्यत्व से पूर्ण हैं।
ये गुजरात और राजस्थान की अनपढ़ और मिथ्याडम्बरों की विपात्रत प्रवृत्यिों में फंसी जनता में अपनी साहित्य साधना एवं आत्मसाधना द्वारा चेतना जगाने का निरन्तर कार्य करते रहे । अतः इनकी भाषा सर्वत्र गुजराती मिश्रित हिन्दी है । वीरचन्द्र : ( १७ वीं शती प्रथम चरण )
भट्टारकीय बलात्कार गण णाखा के संस्थापक भट्टारक देवेन्द्रकीति ने जब सूरत में भट्ठारक गद्दी की स्थापना की, तब भट्ठारक सकलकीर्ति का राजस्थान एवं गुजरात में विशेष प्रभाव था। इन्हीं म० देवेन्द्रकीर्ति की परंपरा में भ० लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य वीरचन्द्र हए, जो अपने गुरु लक्ष्मीचन्द्र की मृत्यु के पश्चात् भट्रारक बने थे। इनका सम्बन्ध नी विशेषतः सूरतगद्दी से था। १ लक्ष्मीचन्द्र सम्बत् १५८२ तक भद्वारक पद पर रहे, अतः इनका समय १७ वीं शती का प्रथम चरण ही होना चाहिए।
वीरचन्द्र व्याकरण एवं न्यायशास्त्र के प्रकाण्ड पंडित थे। साथ ही छन्द, अलंकार एवं संगीत आदि शास्त्रों में भी पूर्ण निपुण थे । ये पूर्ण साधुजीवन यापन करते हुए संयम एवं सावुता का उपदेश देते रहे।
संत वीरचन्द्र संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी एवं गुजराजी भाषा के अधिकारी विद्वान थे । अब तक की खोजों में इनकी आठ रचनाएं उपलब्ध है जो इन्हें उत्तम कोटि के १ राजस्थाद के जैन संत - व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल,
पृ० १०६ ।