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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
इम करीय पूजाय धाजो गहि संघ पूजा आदरई, साहम्मिवच्छल करई भवियां, भव समुद्र लीला तरई । संपदा सोह्ग तेह मानव, रिद्धि वृद्धि बहु लहई, अमर माणिक सीरन सुपरइ, साबुकीर्ति सुख लहई ||
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'नमि राजपि चौपई' - इसकी रचना सं० १६३६ माघ शुक्ल ५ के दिन नागोर में हुई थी । १ इनकी भाषा गुजराती मिश्रित हिन्दी है । सुमति कीर्ति : (सं० १६२० आसपास)
सत्रहवीं शताब्दी में “सुमतिकीर्ति" नाम के दो संत हुए और दोनों ही अपने समय के विद्वान थे । इनमें से एक भट्टारक ज्ञानभूषण के शिष्य थे तथा दूसरे भट्टारक शुभचंद्र के । आलोच्य " सुमतिकीर्ति" प्रथम सुमतिकीर्ति है जो मूलसंघ में स्थित नन्दिसंघ बलात्कारगण एवं सरस्वतीगच्छ के ज्ञानभूषणमूरि के शिष्य थे । २ इन्होंने अपनी" " प्राकृत पंचसंग्रह" टीका संवत् १६२० भाद्रपद शुक्ला दशमी को ईडर के ऋपदेव मन्दिर में पूर्ण की थी। जिसका संशोधन ज्ञानभूषण ने ही किया था । ३
सुमतिकीति अपने समय के एक विद्वान संत थे और साहित्य-साधना ही इनका लक्ष्य था । संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी एवं राजस्थानी के अच्छे विद्वान थे । इनका अधिकांश समय साहित्य साधना में ही व्यतीत होता था । इनकी निम्न रचनाएँ उपलब्ध हैं -
(१) धर्म परीक्षा रास, विवाद, (४) वसंत विद्या - विलास, देहल्यो मानव भव साधो रे माई । ) धर्म परीक्षा रास :
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(२) जिनवर स्वामी वीनती, (३) जिहवादंत (५) पद ( काल भवे तो जीव बहूँ परिममता तथा ( ६ ) गीतलनाथ गीत |
इसकी एक प्रति अग्रवाल दिगम्बर जैन मन्दिर, उदयपुर में सुरक्षित है । यह एक हिन्दी रचना है जिसका उल्लेख पं० परमानंदजी ने अपने प्रशस्ति संग्रह की भूमिका में किया है । ४ इस ग्रंथ की रचना ह सोट नगर (गुजरात) में संवत् १६२५ में हुई। इसका अन्तिम छंद इस बात का प्रमाण है ।
१ वही भाग ३, पृ० ६६६
२ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल, पृ०
३ पं० परमानन्दजी द्वारा सम्पादित, "प्रशस्ति संग्रह ", ४ वही, पृ० ७४
पृ७ ७५