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गण्डव्यूहसूत्रम्। बातों के वर्णन इतने प्रचंड हैं कि 'अनभिलाप्यानभिलाप्य' अर्थात् वर्णनातीतों में वर्णनातीत ही एक शब्द-प्रयोग है जो इस ग्रंथका ठीक ठीक स्वरूप वर्णन कर सकता है।
_ भिन्न भिन्न मातृकाओं में ही नहीं, एकमात्र मुद्रित संस्करण में भी परिरक्षित संहितापाठ अनेक स्थलों में सदोष है, उसमें बहुसंख्यक रिक्तस्थान हैं, और यद्यपि मेरा विश्वास है कि मैंने प्रस्तुत संस्करण में मातृकाओं में से किसी भी एक में या एकमात्र मुद्रित प्रति में प्राप्य पाठ से निश्चयपूर्वक विशुद्धतर पाठ दिया है, तोभी इसमें अनेक स्थल ऐसे हैं जहाँ सुधार असंभव नहीं ।
प्रस्तुत संस्करण प्रधानतया शुझुकि तथा इझुमि द्वारा संपादित एक मात्र छपे संस्करण पर आधारित है, तो भी सौभाग्यवश मुझे बडौदा की ओरिएन्टल इन्स्टिट्यूट के ग्रंथालय के हस्तलिखित विभाग में नेपाली लिपि में लिखित सुन्दर पांडुलिपि मिली ( जिसके प्रथम तथा अंतिम पृष्ठकी छायामुद्रित प्रतिकृति प्रस्तुत संस्करण के पंचम पृष्ठ के संमुख मौजूद है)। इस प्रति से संहिता का संशोधन करने तथा बहुसंख्य रिक्तस्थलों की पूर्ति करने में पर्याप्त सहायता मिली । इसके अलावा मैंने विरामचिह्नोंका प्रयोग संशोधित किया है, शब्दों, वाक्समूहों तथा अनुच्छेदों को ठीकठीक अलग किया है, छन्दोंको क्रमांक दिये हैं । उपलब्ध मुद्रित संस्करण इन सब बातों से विहीन है, जिसका बडा दुःख है । मैं कह सकता हूँ, और इसमें अल्पमात्रा में भी घमंड की बू नहीं है, कि पूर्वसंस्करण की अपेक्षा प्रस्तुत संस्करण में अल्यधिक मात्रा में सुधार पाठक पाएँगे।
२, पूर्ववर्ती संस्करण ऊपर मैं कह आया हूँ कि केवल एकमात्र मुद्रित संस्करण उपलब्ध है। प्रो. डी. टी. शुझुकि और प्रो. एच्. इझुमि द्वारा वह संस्करण संपादित है, तथा उसे संसार के पवित्र ग्रंथों को प्रकाशन के लिए कियोटो, जापान में जो संस्था (The Society for the Publication of Sacred Books of the World है उसने सन १९४९ में प्रकाशित किया है (हाशिये में S से उल्लिखित ) । यह संस्करण खुद भी एक मिमिओग्राफ प्रतिलिपि की छायाचित्रित प्रतिकृति है। यह मिमिओग्राफ प्रतिलिपि सन १९२९ में प्रो. S. Susa द्वारा की गयी थी । यह संस्करण छः मातृकाओं पर आधारित है, जिनमें से एक लंदन की रॉयल एशियाटिक सोसायटी से मिली थी; दो केंब्रिज विद्यापीठ ग्रंथालय से; एक बिब्लिओथेक नॅशनेल, पारिस से; एक टोकियो इंपीरियल युनिव्हर्सिटी से; तथा एक कियोटो विद्यापीठ ग्रंथालय से। इन छः मातृकाओं में से केवल एक जो रॉयल एशियाटिक सोसायटी, लंदन से प्राप्त है, तालपत्रों पर लिखित है। उसपर नेपाली शकगणना के २८६ (सन ११६६) वें सालकी तिथि मिलती है, अतः वह प्राचीनतम है । बाकी सब मातृकाएँ उसके बाद कागजपर लिखित हस्तलिपियाँ हैं । इन हस्तलिपियों से संपादकों ने पाठान्तर संगृहीत किये, पर