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________________ प्रस्तावना। xxi उस जिल्द में उन्हें समाविष्ट नहीं किया, और उन्हें अलग जिल्द में प्रकाशित करने का विचार भी अब उन्होंने छोडसा दिया है। चिकित्सक पंडितों के लिए उपयुक्त सामग्री से इस प्रकार संसार वंचित रह गया है । तथापि यह समझा जाता है कि संपादकोंने अपनी संहिता में सर्वोत्तम तथा विश्वसनीयतम पाठ ही खीक़त किये हैं। तथापि इस संस्करण की चिकित्सापूर्ण जाँच से मालूम होता है कि उपलब्ध छहों मातृकाओं की सहायता से भी संहिताके रिक्त स्थानों की पूर्ति करने में संपादकमहाशय समर्थ नहीं हुए हैं । यद्यपि मुझे एकमात्र नयी मातृका मिली है, जो उन संपादकों के सामने नहीं थी, तो भी उनके छोडे हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति करने में मुझे भी पूरी सफलता नहीं मिली है। इसके बावजूद भी बडौदा हस्तलिपिकी प्राप्ति तथा उपयोग से अनेक स्थलों की रिक्ततापूर्ति करने में, मेरी संहिता के संशोधन में, कतिपय महत्त्वपूर्ण पाठान्तर समाविष्ट करने में, तथा कतिपय पूर्तियाँ तथा त्रुटियाँ निर्दिष्ट करने में मुझे वडी सहायता मिली है। मैं ऊपर सूचित कर आया हूँ कि कियोटो संस्करणकी संहिताको विरामचिह्नों के प्रयोग में सुधार कर देने तथा शब्दों और बाक्समूहों के शुद्ध विभाजन करने से अधिक वाचनीय तथा सरल किया जा सकता था। इन परिवर्तनों के कारण ही प्रस्तुत संस्करण पूर्ववर्ती संस्करणसे बहुत अधिक प्रगति कर चुका है। ३. बडौदा हस्तलिपि __ इस प्रकार सौभाग्यवश ओरिएंटल इन्स्टिट्यूटकी हस्तलिपियों के संग्रह में नेवारी लिपि में लिखित इस नयी हस्तलिपि की प्राप्ति मुझे हो गयी (जो हाशिये के उल्लेखों तथा पादटिप्पणियों में B से निर्दिष्ट है)। यह स्पष्ट ही है कि प्रस्तुत हस्तलिपि प्रो. शुझुकि और प्रो. इझुमि द्वारा काममें लायी गयी मातृकाओं से भिन्न संहिता की प्रतिलिपि है । इन्स्टिट्यूट के भूतपूर्व संचालक डॉ. बी. भट्टाचार्य ने अपनी संस्थाके लिए नेपाल में वह प्राप्त की। काठमांडू के वज्राचार्य मठ में वह मिली । जिस कागज पर वह लिखी थी वह हाथकी बनावट का एक ओर पीले रंग में रंजित तथा लाल स्याही में द्वि-रेखीय हाशिये से अंकित नेपाली कागज़ था । पृष्ठकी लंबाई ६१.५ सें मी. और चौडाई २८.२ सें. मी. थी। एक पृष्ठ पर नौ पंक्तियाँ, और हर पंक्ति में करीब ९८ अक्षर हैं, और ऐसे पन्ने कुल २१८ हैं। प्रथम पृष्ठ के बीचोबीच एक विविधरंगीय चित्र है, जिसमें वुद्ध तथा उनके बोधिसत्वोंकी परिषद् आदि अंकित है। इस हस्तलिपि में भी ... से अंकित रिक्त स्थान मिलते है, जिनसे यह निर्देश मिलता है कि वह भी किसी अन्य पूर्ववर्ती हस्तलिपि की प्रतिलिपि है। इन्स्टिट्यूट के संचालक ने उपरिनिर्दिष्ट मातृका का देवनागरी लिप्यन्तर इन्स्टिट्यूट के पंडित हरिराम शास्त्री द्वारा करवाया और मूल के साथ तुलना करके उसकी स्वयं जाँच की । गायकवाड ओरिएंटल ग्रंथमाला के संकल्पित आगामी संस्करण के लिए मुद्रणप्रति बनवाना उसका उद्देश्य रहा हो। सन १९५८-५९ में इन्स्टिट्यूट
SR No.010189
Book TitleGandavyuha sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP L Vaidya
PublisherMithila Institute Darbhanga
Publication Year1960
Total Pages491
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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