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प्रस्तावना।
गण्डव्यहसूत्र नेपाली बौद्धधर्मके नौ धर्मों या आगमों में से एक है, और इस रूपमें वह संसार भरके महायान बौद्धोंका अतीव समादृत ग्रंथ है । इस ग्रंथ के चरम पुष्पिका में उल्लिखित परंपराके अनुसार गण्डव्यूहसूत्र की मूल संहिता, समाधिराजसूत्र के ही समान, बहुत अधिक विशाल थी, और इस रचना में जो प्रस्तुत है वह केवल आज उपलब्ध उसका एक अंशमात्र है ।
आर्यगण्डव्यूहान्महाधर्मपर्यायाद् यथालब्धः सुधनकल्याणमित्रपर्युपासनचर्यैकदेशः। __ और इसका विषय है सुधन नामक सार्थवाहपुत्र का बुद्धता या बोधिसत्त्वता की प्राप्ति के लिए आचारमार्ग जानने की खोज । इस उद्देश्यसिद्धि के लिए उसे उपदेश दिया गया कि वह कतिपय कल्याणमित्रों से-जो कि इस मार्गमें पारंगत हैं, और जिनकी संख्या ११० है ( दशोत्तरं कल्याणमित्रशतं परिपृच्छन् पृ. ३९४ )-मिलने के लिए दक्षिणापथ के उतने ही स्थानों का पर्यटन करे । इन ११० मित्रोंमें से मंजुश्री से लेकर समंतभद्र तक के केवल बावन या त्रेपन का ही वृत्तांत इस उपलब्ध अंशमें पाया जाता है । इस ग्रंथके अंतिम परिच्छेद में प्रस्तुत आचारमार्ग सुप्रतिष्ठित किया गया है
और 'भद्रचरीप्रणिधानम्' या 'समन्तभद्रचर्याप्रणिधानम्' नाम से वह ज्ञात है, जिसका अर्थ है बोधिसत्त्व समन्तभद्रद्वारा उपदिष्ट आचारमार्ग का चिन्तन । मंजुश्री, जिसने सुधन को बोधिसत्त्व बननेकी क्षमता रखनेवाला जान लिया, उसे सलाह देता है कि वह भिक्खु, भिक्खुणियाँ, राजालोग, श्रावक, श्राविकाएँ, देवतागण, कलाकौशलके अध्यापक तथा गोपा और माया-बुद्ध की पत्नी और माता-जैसी स्त्रियाँ आदि कतिपय साधुवृत्ति व्यक्तियों से मिले । किन्तु सुधन ने जान लिया कि इन सब व्यक्तिविशेषोंने बोधिसत्त्वोंके अनन्त गुणोंमें से केवल कुछ अंश ही प्राप्त कर लिया है। बोधिसत्त्व मैत्रेयने उसे पुनः मंजुश्रीके पास जाने का आदेश दिया और मंजुश्रीने इस बार उसे समन्तभद्रसे मिलने की सलाह दी। इसी बोधिसत्त्वसमन्तभद्रने सुधन को भद्रचरीप्रणिधान नामक विशेष विद्या पढायी।
___ इस ग्रंथ का कलेवर तथा भाषा-जो कि बाणभट्ट की शैली के पूर्वरूप-सी हैदोनों वैसे तो भयानक ही हैं । उसके कलेवर का विस्तार है ३२ अक्षरोंवाले १२००० छन्द जो उपलब्ध अंश में विद्यमान हैं, और भाषा अतिशयोक्त तथा आडम्बरपूर्ण है, जिसमें वारंवार आनेवाले शब्द तथा शब्दसमूह ये हैं-अनभिलाप्यानभिलाप्य, बुद्धक्षेत्रकोटीनयुतपरमाणुरजःसम और उनके समानार्थक मेघ, सागर, गङ्गानदीवालुकासम आदि आदि । स्थलों तथा व्यक्तियों के वृत्तान्त, भूत, वर्तमान और आगामी तथागतों तथा बोधिसत्त्वों के नाम, समाधि तथा विमोक्ष, प्रदेश तथा कल्प आदि ग्रंथ में उल्लिखित