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प्राचीन आचार्य परम्परा
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इस प्रकार अनेकानेक क्षेत्रों में, जीवन के हर क्षेत्र में जैनाचार्यों का अमूल्य योगदान रहा है, जीवन परिवर्तित करके व्यक्ति का सुधार व्यक्ति का समूह ही समाज है और समाजों का समूह ही राष्ट्र |
इन सब परिप्रेक्ष्य में आचार्यों का महत् योगदान रहा है । यदि कहीं कमी दिखती है तो वह हममें है । यदि हमारा रेडियो या टी० वी० खराब हो तो स्टेशन से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम उसमें नहीं दिखते या नहीं सुनाई पड़ते । ऐसे में हम स्टेशन का दोष न देकर अपने सैट की कमी ही निकालने का प्रयत्न करते हैं । आज के गृहस्थों में यदि अपेक्षित सुधार नहीं दिखता तो दोष आचार्यों का नहीं हमारा है, व्यक्ति का है, राष्ट्र के नागरिकों का है, जो हम उनके सान्निध्य में जाते नहीं, जाते हैं तो सुनते नहीं और सुनते हैं तो जीवन में उतारते नहीं । वर्षा हो रही हो व पात्र उल्टा रखा हो तो झोल तो भर जावेगी पर वर्तन कदापि न भरेगा। आज हमारा पात्र ही उल्टा है । धर्मामृत की वर्षा तो निरन्तर हो रही है पात्र जिनके सीधे हैं वह भर रहे हैं, ऐसे शताधिक मुनिवर आज स्वयं का कल्याण करते हुये, बदल रहे हैं समाज को, राष्ट्र को ।
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ऐसे इन श्रमरणों को हमारा शत शत वंदन नमन अर्चन ।
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