________________
प्राचार्य रविषेण
दिगम्बर कथा साहित्य में बहुत प्राचीन ग्रन्थ हैं । जिनमें प्रमुखतः रविषेण आचार्य द्वारा रचित पद्मपुराण ग्रंथ का भी स्थान महत्वपूर्ण है।
आपने अपने किसी संघ या गच्छ का कोई उल्लेख नहीं किया और न ही स्थानादि की ही चर्चा की है । परन्तु सेनान्त नाम से अनुमान होता है कि सम्भवतः सेन संघ के हों। इनकी गुरु परम्परा के पूरे नाम इन्द्रसेन, दिवाकर, अर्हत्सेन और लक्ष्मणसेन होंगे, ऐसा जान पड़ता है। अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख इन्होंने इसी पद्मपुराण के १२ वें पर्व के १६ वें श्लोक के उत्तरार्ध में किया है।
ये किस प्रान्त के थे इनके माता पिता आदि कौन थे तथा इनका गार्हस्थ जीवन कैसा रहा ? इन सब का पता नहीं है । ऐसा ज्ञात हुवा है कि भगवान महावीर के निर्वाण होने के १२०३ वर्ष ६ माह बीत जाने पर पद्यमुनि का चरित्र निबद्ध किया गया । इस प्रकार इनकी रचना ७३४ विक्रम सं० में पूर्ण हुई।
राम कथा भारतीय साहित्य में सबसे अधिक प्राचीन, व्यापक, आदरणीय और रोचक रही है। यदि हम प्राचीन संस्कृत प्राकृत साहित्य को इस दृष्टि से मापें तो सम्भवतः आधे से अधिक साहित्य किसी न किसी रूप में इसी कथा से सम्बद्ध, उद्भूत या प्रेरित पाये जावेंगे।
पद्म पुराण की रचना कर श्री रविषेणाचार्य ने जन जन का बहुत कल्याण किया है। महान आचार्य ने भारत भूमि को अलंकृत किया । सुदीर्घकाल व्यतीत हो जाने पर भी ये प्रत्येक भारतीय की श्रद्धा के पात्र हैं । इसे आवाल-वृद्ध सभी लोग बड़ी श्रद्धा से पढ़ते हैं। बिरला ही ऐसा कोई मन्दिर होगा जहाँ पद्मपुराण की प्रति न हो।