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आचार्य पूज्यपाद स्वामी
पूज्यपाद स्वामी महान प्रतिभाशाली प्राचार्य श्रीर युग प्रधान योगेन्द्र थे । प्रापकी विद्वत्ता अखंड और अतिशय पूर्ण थी । दिव्यकीर्ति के आप स्तम्भ थे । आपके द्वारा रचित ग्रन्थों से निश्चित रूप से विदित होता है कि आपकी योग्यता असाधारण थी ।
श्रवणबेलगोला नं० १०८ के शिलालेख के आधार पर उन्हें अद्वितीय श्रोषध ऋद्धि प्राप्त थी । एक बार उनके चरण प्रक्षालित जल के छूने मात्र से लोहा भी सोना वन गया । उनके विदेहगमन की बात भी इसी शिलालेख के आधार से सिद्ध होती है ।
पूज्यपाद साहित्य - रसिक और महान् शाब्दिक थे । जिनेन्द्र व्याकरण साहित्य जगत की प्रतिष्ठा प्राप्त कृति है । इस व्याकरण के कर्ता जिनेन्द्र बुद्धि पूज्यपाद ही थे । जैन विद्वान द्वारा लिखा गया यह प्रथम संस्कृत व्याकरण है । इसी व्याकरण के आधार पर पाणिनी व्याकरण लिखा गया है ।
तत्वार्थ सूत्र की व्याख्या में उन्होंने सर्वार्थसिद्धि का निर्माण किया । सिद्धि शब्द ही उनके प्रौढ़ ज्ञान का संकेतक है । समाधितंत्र तथा इष्टोपदेश ये दोनों पूर्णतः श्राध्यात्मिक ग्रन्थ हैं आपके द्वारा और अनेक ग्रन्थ लिखने का प्रमाण है । द्रविड़ संघ की स्थापना वीर नि० सं० हε६ ( वि० सं० ५२६ ) में हुई थी इस संघ की स्थापना का श्रेय श्राचार्य पूज्यपाद के शिष्य प्राभृतवेत्ता
नन्दी को है ।
ज्योतिषियों द्वारा वालक को त्रैलोक्य पूज्य वतलाने के कारण उसका नाम पूज्यपाद रखा । पूज्यपाद ने रसायन, मंत्रविद्या, व्याकरण, वैद्यक, प्रतिष्ठा लक्षण श्रादि पर कई ग्रन्थ लिखे हैं । पैरों में साधारण वनस्पति का गगनगामी लेप लगाकर विदेह क्षेत्र को जाया करते थे । पूज्यपाद मुनि बहुत समय तक योगाभ्यास करते रहे फिर एक देव के विमान में बैठकर उन्होंने अनेक तीर्थों की यात्रा की । मार्ग में एक जगह उनकी दृष्टि लोप हो गई थी जिसे उन्होंने शान्त्यष्टक द्वारा ठीक करली | इसके कुछ समय वाद समाधिपूर्वक मरण किया ।