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प्राचार्य कुन्दकुन्दस्वामी
जैन साहित्य के अभ्युदय में दाक्षिणात्य प्रतिभाओं का महान योगदान रहा उसमें आचार्य कुन्दकुन्द को सर्वतोन स्थान प्राप्त है। ,
वे कर्णाटक के कोंडकुड के निवासी थे। उनके पिता का नाम करमंडू और माता का नाम श्रीमति था । बोधप्राभृत के अनुसार वे श्रुतकेवली भद्रवाहु के परम्परागत शिष्य थे।
पद्यनन्दी वक्रग्रीव, गृध्रपिच्छ, एलाचार्य और कुन्दकुन्द उनके नाम थे । अध्यात्म ग्रन्थों के प्रमुख व्याख्याकार थे। उनकी आत्मानुभूति पारक वाणी ने अध्यात्म के नए क्षितिज का उद्घाटन किया और आगमिक तत्वों को तर्क सुसंगत परिधान दिया।
प्राचार्य कुन्दकुन्द चौरासी प्राभृतों (पाहुड़) के रचनाकार थे, पर वर्तमान में उन चौरासी प्राभृतों में से अनेक पाहुड़ उपलब्ध नहीं हैं।
आज भी कई उच्चकोटि के ग्रन्थ जैसे समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, मूलाचार, रयणसार, अष्टपाहुड़ आदि अनेकों ग्रन्थ उपलब्ध हैं।
आचार्य कुन्दकुन्द दर्शन युग में आए पर उन्होंने अध्यात्म प्रसाद को दर्शन की नींव पर खड़ा नहीं किया । प्रस्तुत दर्शन को आगमिक सांचे में ढाला।
दिगम्बर जैनाचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है तथा ऊँचा स्थान है। भगवान महावीर और गौतम के साथ उनका नाम मंगल रूप में अतिशय गौरव के साथ स्मरण किया जाता है।