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आचार्य उमास्वामी
उमास्वामी अपने युग के महान विद्वान साधु हुए थे । संस्कृत भाषा पर उनका अतिशय अधिकार था । जैन दर्शन की विपुल सामग्री को प्रांजल सुर भारती में प्रस्तुत करने का सर्व प्रथम श्रेय उन्हीं को था । तत्वार्थ सूत्र आचार्य उमास्वामी की प्रसिद्ध रचना है व जैन तत्वों का संग्राहक ग्रन्थ है | मोक्ष मार्ग के रूप में रत्नत्रय का युक्त पुरस्सर निरूपण पद्रव्य और नव तत्व की विवेचना ज्ञान-ज्ञेय को समुचित व्यवस्था और भूगोल -खगोल की परिचर्या से इस ग्रन्थ की जैन समाज में महती उपयोगिता सिद्ध हुई है । प्राचार्य उमास्वामी वेजोड़ संग्राहक थे । उन्होंने जैन दर्शन से सम्बन्धित कोई भी विषय बाकी नहीं छोड़ा जिसका इस कृति में उल्लेख न हो। इस संग्राहक वृत्ति से उनको जैन समाज में बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त है ।
संस्कृत साहित्य के धुरंधर इतिहासकारों ने उमास्वामी को जैनाचार्यों में संस्कृत का सर्व प्रथम लेखक कहा है । उनका संस्कृत भाषा पर पूर्ण श्रधिकार था । ग्रन्थ की शैली संक्षिप्त प्रशस्त और शुद्ध संस्कृत रूप में है ।
वीर वाणी के सम्पूर्ण पदार्थों का संग्रह तत्वार्थसूत्र में किया है । एक भी महत्वपूर्ण विषय का कथन किये बिना नहीं छोड़ा है इसी से प्राचार्य महोदय को सर्वोत्कृष्ट निरूपक कहा है । आपकी रचना पर से अनेकों प्राचार्यों ने बड़ी बड़ी टीकाऐं की हैं ।
श्राचार्य उमास्वामी जैन समाज को एक ऐसा चिरस्मरणीय ज्ञान प्रदान कर गये हैं। जिसके लिए दिगम्बर जैन समाज चिरऋणी रहेगा ।