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प्राचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि
पुष्पदन्त और भूतबलि महामेधा सम्पन्न प्राचार्य थे । उनकी सूक्ष्मप्रज्ञा आचार्य धरसैन के ज्ञान पारावार को ग्रहण करने में सक्षम सिद्ध हुई ।
आचार्य श्री से ज्ञान सम्पदा लेकर लौटने के बाद दोनों ने एक साथ अंकलेश्वर में चातुर्मासिक स्थिति सम्पन्न की । वहाँ से पुष्पदन्त वन की ओर गये तथा भूतबलि का पदार्पण द्रमिल देश में हुवा । तथा आचार्य पुष्पदन्त ने जिनपालित नामक व्यक्ति को दीक्षा प्रदान की ।
षट्खण्डागम दिगम्बर साहित्य का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है सत्कर्म प्राभृत खण्ड सिद्धान्त तथा षट् खण्ड सिद्धान्त की संज्ञा से भी यह ग्रन्थ पहचाना जाता है । इस ग्रन्थ के रचनाकार आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि थे ।
साहित्य को स्थायित्व प्रदान करने की दृष्टि से पुष्पदन्त और भूतबलि के समय में प्रथम वार साहित्य निवद्ध किया गया था । जैन परम्परा में इससे पहले श्रुत पुस्तक निबद्ध नहीं थी ।
आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि द्वारा प्रसूत नई प्रवृत्ति का जनता के द्वारा विरोध नहीं, स्वागत ही हुवा था । कहा जाता है - पुस्तकारूढ़ साहित्य को ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन संघ के सामने प्रस्तुत किया गया था । अतः यह पंचमी 'श्रुत पंचमी' के नाम से प्रसिद्ध हुई है । इस प्रसंग पर ग्रन्थ का संघ ने पूजा महोत्सव मनाया ।
आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि जैन शासन के महान प्रभावी आचार्य हुए उनकी अमर दायिनी कृति आज भी वही याद दिलाती है ऐसे महान श्राचार्यों को शत शत वंदन !