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प्राचार्य धरसैन
प्राचार्य धरसैन आगम ज्ञान के विशिष्ट ज्ञाता एवं अष्टांग निमित्त के पारगामी विद्वान | श्रुत की धारा को अविच्छिन्न रखने के लिए महिमा महोत्सव में एकत्रित मुनि सम्मेलन के प्रमुख प्राचार्यों के पास पत्र भेजा इस पत्र के द्वारा उन्होंने प्रतिभा सम्पन्न मुनियों की मांग की थी।
आचार्यों ने पत्र पर गम्भीरता पूर्वक चिन्तन किया और समग्र मुनिवर्ग में से दो मेधावी मुनियों को उनके पास सौराष्ट्र में गिरिनार की चन्द्र गुफा में जहां उनका निवास था, वहां उन मेधावी मुनिराज को भेजा । उनमें एक का नाम सुबुद्धि तथा दूसरे का नाम नरवाहन था, दोनों मुनिराज विनयवान, शीलवान, जाति सम्पन्न, कुल सम्पन्न एवं कला सम्पन्न थे । श्रागमार्थ को ग्रहण और धारण करने में समर्थ थे और वे आचार्यों से तीन वार पूछकर प्राज्ञा लेने वाले थे ।
जब दोनों श्रमरण वेणानदी के तट से धरसेनाचार्य के पास आने के लिए प्रस्थित हुए थे उस समय पश्चिम निशा में श्राचार्य धरसैन ने स्वप्न देखा था - दो धवल ऋषभ उनके पास थाए और उन्हें प्रदक्षिणा देकर उनके चरणों में बैठ गए । इस शुभसूचक स्वप्न से आचार्य धरसैन को प्रसन्नता हुई । आचार्य घरसैन का स्वप्न फलवान बना । दोनों मुनि ज्ञान ग्रहण करने के लिए उनके पास पहुंचे । उन मुनिराज को धरसैन ने मंत्र देकर सिद्धि कराई तथा आचार्य धरसैन की परीक्षा विधी में भी उभय मुनि पूर्ण उत्तीर्ण हुए और विनय पूर्वक श्रुतोपासना करने लगे उनका श्रध्ययन क्रम शुभ तिथि, नक्षत्र, वार में प्रारम्भ हुवा था । आचार्य धरसैन की ज्ञान प्रदान करने की अपूर्व क्षमता एवं युगल मुनियों की सूक्ष्मग्राही प्रतिभा का मणि-कांचन योग था । अध्ययन का क्रम द्रुतगति से चला । श्राषाढ़ शुक्ला एकादशी के पूर्वाह्न काल में वाचन कार्य सम्पन्न हुवा | इस महत्वपूर्ण कार्य की सम्पन्नता के अवसर पर देवताओं ने भी मधुर वाद्य ध्वनि की थी । श्राचार्य धरसैन ने एक का नाम भूतबलि दूसरे का नाम पुष्पदन्त रखा था ।
निमित्त ज्ञान से अपना मृत्युकाल निकट जानकर धरसैनाचार्य ने सोचा मेरे स्वर्ग गमन से इन्हें कष्ट न हो। उन्होंने दोनों मुनियों को श्रुत की महा उप सम्पदा प्रदान कर कुशलक्षेम पूर्वक उन्हें विदा किया |
आगम निधि सुरक्षित रखने का यह कार्य प्राचार्य धरसैन के महान दूरदर्शी गुरण को प्रगट करता है । जैन समाज के पास आज षट् खण्डागम जैसी अमूल्य कृति है उसका श्रेय आचार्य धरसैन के इस भव्य प्रयत्न को है ।
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