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________________ दिगम्बर जैन साधु [४७६ की। उस समय आपकी उम्र १७ वर्ष थी। वहां से विहार कर संघ का चातुर्मास अहदाबाद में हुआ। उसके बाद आपने गुरु की आज्ञानुसार सम्मेदशिखरजी के लिए विहार किया। आप पैदल यात्रा करते हुए आगरा आये वहां पर श्री परमपूज्य १०८ विमलसागरजी का संघ विराजमान था। आपने सं० २०२४ मिती आषाढ़ सुदी ५ रविवार के दिन महाव्रतों को धारणकर निम्रन्थ मुनि दीक्षा धारण की तथा संघ का चातुर्मास वहीं पर हुआ। वहां से विहार करते हुए आप कुण्डलपुर आये। जहां पर आचार्य श्री से व० निजात्मारामजी ने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। वहां से विहार करते हुए आप श्री सम्मेदशिखर पधारे। वहाँ पर महाराज श्री की तीर्थराज वन्दना सकुशल हुई। बाद में आपका चातुर्मास हजारीबाग में हुआ। उसके बाद आप मधुवन आये । वहाँ पर क्षुल्लकजी ने आप से महाव्रत ग्रहण किये । बाद में आप ईसरी पंचकल्याणक में पधारे तथा वहाँ पर ५ दीक्षायें आपके द्वारा हुई । आप वहां से विहार करते हुए वारावंकी पधारे। जहां पर आपका चातुर्मास हुआ। वहां से विहार करते हुए आप मेरठ आये। मेरठ से आप संघ सहित पांडव नगरी भगवान् शान्तिनाथ, अरहनाथ, कुन्थनाथ, मल्लिनाथ की जन्मभूमि हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र पर जिस दिन भगवान आदिनाथ ने श्रेयांस राजा से प्रथम आदि काल का आहार गन्ने के रस के रूप में लिया था पधारे। संघ सहित विराजकर आपके सम्पूर्ण संघ ने गन्ने का रस लेकर उस दिन की याद को ताजा करा दिया मानो वो ही दृश्य सामने हो । मुनि श्री एक माह रहकर मीरापुर, जानसठ, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना, वरनावा, विनौलो, बड़ागांव, वडीत आदि इलाकों में होते हुए चातुर्मास के लिए दिल्ली कैलाशनगर में विराजे । आपने अनेकों स्थानों पर चातुर्मास किए। वर्तमान में आप गिरनार क्षेत्र पर निर्मल ध्यान केन्द्र का निर्माण कार्य प्रापके सदुपदेश से वन रहा है। आप व्रतों में दृढ़ एवं साहसी हैं, सरलता अधिक है, क्रोध तो देखने में भी नहीं आता तथा प्रकृति शांत एवं नम्र है ऐसे वीतरागी निर्ग्रन्थ साधुओं के प्रति अगाध श्रद्धा है। आचार्य श्री कुन्थसागरजी महाराज घरकों के मातृत्व सुख की तमन्ना पूरी हुई तो छविराज फूले नहीं समाये । पिता बन जाने की खशी में सं० १९७२ माघ शु० पंचमी (बंसत पंचमी) को धौवा ग्राम (ग्वालियर) की गलियों में उन्होंने बाजे बजवा दिये । गांव की सयानी औरतों ने बधाई गाते हुए सीख दी-लाला! ललन का
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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