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दिगम्बर जैन साधु प्राचार्य श्री निर्मलसागरजी महाराज
प्राचार्य श्री का जन्म उत्तरप्रदेश, जिला ऐटा ग्राम पहाड़ीपुर में मंगसिर बदी २ विक्रम संवत् २००३ में पद्मावती परिवार में हुआ था, आपके पिताजी का नाम सेठ श्री बोहरेलालजी एवं माताजी का नाम गोमावतीजी था, दोनों ही धर्मात्मा एवं श्रद्धालु थे। देव, शास्त्र, गुरु के प्रति उनकी अनन्य भक्ति थी तथा अपना अधिक समयधार्मिक कार्यों में ही व्यतीत करते थे। उन्होंने पांच पुत्र एवं तीन कन्या को जन्म दिया। उनमें से सबसे छोटे होने के कारण आप पर मातापिता का अधिक प्रेम रहा लेकिन वह प्यार अधिक समय तक न चल सका तथा आपकी छोटी उम्र में ही आपके माता-पिता देवलोक सिधार गये थे। आपका बचपन का नाम श्री
रमेशचन्द्रजी था। आपका लालन-पालन आपके बड़े भाई . ... ... श्री गौरीशंकरजी द्वारा हुआ। आपकी वैराग्य-भावना
बचपन में ही बलवती हुई थी । आपके मन में घर के प्रति . अति उदासीनता थी । आपके हृदय में आहारदान देने व निर्ग्रन्थमुनि बनने की भावना ने अगाध घर बना लिया था। आप जब छहढाला आदि पढ़ते तो इस संसार के चक्र परिवर्तन को देखकर आपका हृदय काँप उठता था एवम् बारह भावना पढ़ते ही आपके भावों का स्रोत बह उठता तथा वह धर्म चक्षुषों के द्वारा प्रभावित होने लगता था। आप सोचते थे कि इन दुखों से बचकर अपने को कल्याण मार्ग की ओर लगाकर सच्चे सुख की प्राप्ति करूं । इसी के अनन्तर शुभकर्म के योग से परमपूज्य श्री १०८ महावीरकीर्तिजी का शुभागमन हुआ । उस समय आपकी उम्र १२ वर्ष की थी। महाराज श्री आपके घराने में से हैं । आपने उनके समक्ष जमीकन्द का त्याग किया और थोड़े दिन उनके साथ रहे । फिर भाई के प्राग्रह से घर आना पड़ा। अब आपको घर कैद-सा मालूम होने लगा।
आपके भाई ने शादी के बहुत यत्न किये लेकिन सब निष्फल हो गये। आप आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी के संघ में भी थोड़े दिन रहे । वहां से बड़वानी यात्रा के लिये कुछ लोगों के साथ चल दिये । बड़वानी में आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी का संघ विराजमान था । आपने वहां पर दूसरी प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। उस समय आपकी उम्र १५ वर्ष की थी। फिर बाद में आप दिल्ली पहुँचे । वहाँ पर परमपूज्य श्री १०८ श्री सीमन्धरजी का संघ विराजमान था। उनके साथ प्राप गिरनारजी गये । वहां पर आपने सं० २०२२ मिती बैसाख बदी ·१४ को क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण,