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दिगम्बर जैन साधु
मुनि श्री वीरसागरजी महाराज
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वह पावन वेला, जब श्री गुलाबचन्द खेमचन्द दोशी के पुत्ररत्न प्राप्त हुआ, उस पावन वेला को क्या पता था कि मैं विश्व को आत्मोन्नति का संदेश देनेवाले पुरुष को जन्म दे रही हूं । माता सौ० 'चंचल बाई' को क्या पता था कि मेरी कूख से 'अचल' सुख के लिये मेरा पुत्र परमहंस दीक्षा लेगा ।
संवत् १८६२ चैत्र वदी १३ रविवार दिनांक ५-५-४० को चरित्र नायक का जन्म हुआ । जन्म समय में अश्विनी नक्षत्र का पहला चरण था । इस हिसाव से मेष राशि राशि स्वामी मंगल, वर्ण क्षत्रिय, देवगण, अश्व योनि, आद्य नाड़ी आती है । ( नक्षत्र नाम चुन्नीलाल ) ( जन्म समय रात्रि १०.३० बजे ) कुल परिचय - पूज्य महाराजजी के पूर्वज ईडर ( गुजरात ) के रहने वाले हैं । आपके पितामह कलकत्ता में एक कुशल व्यापारी थे। दूसरे जागतिक महायुद्ध के समय वित्त हानि होने से मानसिक क्षति हो गयी । सन् १९२० में उनका देहांत हो गया । चरित्र नायक के पिताजी उस समय केवल १५ वर्ष के थे । व्यापार के लिये श्री गुलाबचन्दजी कुर्डवाडी ( जि० सोलापुर, महाराष्ट्र ) आये । वैसे ही व्यापार निमित्त भांबुर्डी आये । यहीं पूज्य महाराजजी का जन्म हुआ | आपके जन्म समय आपकी माताजी को इतना हर्ष हुआ कि वह हर्ष हर्षवायु बना । लौकिक शिक्षरण - प्राथमिक शिक्षरण
वीं कक्षा तक भांबुर्डी में प्राप्त करने के उपरांत फलटण में हाईस्कूल का शिक्षण पूर्ण किया । उच्च शिक्षा प्राप्ति के हेतु फर्ग्युसन कॉलेज, पूना गये और वी० जे० मेडिकल कॉलेज, पूना से सन् १९६४ में 'एम. वी. वी. एस.' की उपाधि प्राप्त करली ।
व्यावसायिक यश - सन् १६६५ में जि० परभणी ( मराठवाडा ) आये और स्वतंत्र व्यवसाय प्रारम्भ किया । जो भी पेशेंट आपके हॉस्पिटल में आते उन्हें इसका अनुभव होता कि डॉक्टर एक कुशल डॉक्टर होते हुए भी अतीव सरल परिणामी एवं दयालु हैं। किसी पेशेंट से कभी भी ज्यादा फीस निकालने के परिणाम नहीं हुए और न जड़ सम्पत्ति के संग्रह करने का कोई भरसक प्रयत्न किया । परिणाम यह हुआ कि अधिक संपत्ति का संचय न हुआ ।