________________
४५४ ] .
दिगम्बर जैन साधु बार्शी में उनका चातुर्मास बड़े सानंद से हुवा । आपकी अमृतमयी वाणी ने महान् धर्मप्रभावना की । इस पीढ़ी में ऐसा चातुर्मास पहला ही हुआ। बहुत से जनी होते हुए उनको धर्म के असली तत्वों की जानकारी नहीं थी। आपकी प्रभावना से कभी न आने वाले लोग मंदिर में आने लगे। इसका एक मात्र कारण आपका विशुद्ध चारित्र है । वे लोग आज स्वयं इकट्ठ होकर सानंद धर्मचर्चा शास्त्र आदि अध्ययन करते हैं । ऐसी महान आत्मा ने आत्म कल्याण किया।
कन्थल गिरी सिद्धक्षेत्र पर आपने ४१ दिन का समाधिमरण कर स्वर्ग को प्रयाण किया ।
११३ वर्ष की उम्र में प्रापने समाधि धारण की । अक्टूबर सन् १९८३ में आपकी समाधि पूर्ण हुई।
मुनि श्री पिहिताश्रवजी महाराज
आपका जन्म वारंग दक्षिण भारत में सन् १८५८ में कालप्पाजी के यहाँ हुवा था। आपकी . माता का नाम सावित्री था । आपकी लौकिक शिक्षा . ७ वीं तक ही हो पायी थी। पू० आदिसागरजी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया। कोपरगांव में आपने २३ वर्ष की उम्र में क्षुल्लक दीक्षा ली । १ माह के बाद आपने मुनिश्री से मुनि दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा के पश्चात् बाहुबली, उदगांव, सांगली आदि स्थानों में विहार कर जैन धर्म की प्रभावना करते रहे । आपने गुरु के साथ म०प्र०,बिहार, राजस्थान, गुजरात, आदि में विहार कर धर्म प्रभावना
की । आपने अपने जीवन में अनेकों उपवास आदि किए । तपस्वी जीवन ही मुनियों को कर्मनाश का कारण है तथा आपने अनेक प्रकार की कठोर साधना की अन्त में समाधि पूर्वक प्राणों को त्यागा। . .. .