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दिगम्बर जैन साधु. वैवाहिक जीवन-सन् १९६६ में सोलापुर के श्री छगनलालजी गांधी इनकी सुपुत्री कु० शकुन्तला से विवाह हुआ। विवाहोपरांत कु० शकुन्तलाका नाम सौ० अनद्या रक्खा गया। सौ० अनद्यासुविद्य ( B. A. Hom. ), संयमी और सरल स्वभावी थीं । सांसारिक जीवन निर्विघ्न और अत्यन्त सुख पूर्ण रहा। चरित्र नायक ने जिसदिन दिगंबर दीक्षा ली उसी समय सौ० अनद्याबाई ने संसार त्याग दिया । यही उनकी महानता, त्याग गुणों की झलक है।
विरक्ति:-सन् १९६८ से प्राप (मुनिराज) अध्यात्म की ओर अग्रसर हुए। सन् १९७१ में श्री सि. क्षे. कुन्थलगिरी पर पूज्य मुनि १०८ श्री भव्यसागर महाराज के चरणों में कुछ व्रत ग्रहण किये । श्री महावीरजी, श्री गिरनार क्षेत्र, श्री बावनगजाजी आदि तीर्थक्षेत्रों के पावन दर्शन किये । उत्तरोत्तर वैराग्य भाव की वृद्धि होती रही । अंत में जब विरक्ति चरम सीमा पर पहुंची तो आपने दिगम्बर दीक्षा लेने का निश्चय किया और परिणाम स्वरूप दिनांक १४-५-७५ अक्षय तृतीया की सुवर्ण वेला में अकलूज (जि. सोलापुर) में प० पू० १०८ श्री आदिसागरजी महाराज के करकमलों से दिगम्बर दीक्षा ग्रहण की।
एक सज्जन ने दीक्षोपरांत मुझ से प्रश्न किया कि क्या महाराज की डिग्री M.B.B.S. केन्सिल हुई है । प्रश्न सीधा तो दिखता है परन्तु है कठिन । कुछ सोच विचार न करते हुए मैंने उत्तर में कहा, "हां महाराज आज भी M B.B.S. (मास्टर ऑफ ब्रह्मचर्य एण्ड वैचलर ऑफ सम्यक्त्व) है जिस जीव ने अनेक रोगियों की बीमारियाँ दूर की वही M.B.B.S. डॉक्टर का जीव आज संसारी जीवों का भवरोग दूर कर रहा है।
जहां तक मुझे ज्ञात है मैं कहूंगा आपके विरक्ति के भाव स्वयं प्रेरित थे। ऐसी कोई अनुचित भयंकर घटना नहीं जिससे आपने संसार त्याग किया । श्राज महाराज की दिनचर्या ऐसी स्वाभाविक है कि देखनेवालों को लगता है कि महाराज २०-२५ वर्षों पूर्व से दीक्षित हैं । परिणाम प्रतीव शांत है । चर्या निर्दोष है । प्रवचन कुशलता तो अति उच्च श्रेणी की है।।