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दिगम्बर जैन साधु मुनि श्री आदिसागरजी महाराज
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आपका जन्म बुन्देलखंड के अन्तर्गत बम्हौरी ग्राम में मिती कार्तिक सुदी २ विक्रम सं० १९४१ में हुआ था। आपके पिताजी का नाम गोपालदास था और माता का नाम लटकारी था । आप गोला पूर्व चोसरा वंश के सुयोग्य जैन हैं । आपके प्राजा का नाम वहोरेलाल था। उनके यहां गोपालदास, नन्हेंलाल, हलकाई, हजारीलाल और बारेलाल आदि ५ पुत्र थे । आप भी अपने ४ भाइयों में से मझले भाई हैं। भाइयों के नाम इस प्रकार हैं खूबचन्द, खुमान, मोतीलाल और छोटेलाल । आपका विवाह सं० १६५५ में १४ वर्ष की आयु में सरखड़ी में हुआ था।
आप बचपन से ही सदाचारी थे । विवाह के समय से दो बार भोजन करना रात्रि को पानी तक नहीं लेना और पूजन करने का आपका नियम था । आपने अध्ययन किसी पाठशाला में नहीं किया । निज का अनुभव ही कार्यकारी हुआ है। आप घी, धातु, गल्ला और कपड़ा का व्यापार करते थे। अापके सुयोग्य दो पुत्र हैं जो कि चिंतामन और धर्मचन्द, बम्होरी में रहते हैं । आपके वंश द्वारा रेशंदीगिर के उद्धार का कार्य हुआ है । ऐसा जैन मित्र से ज्ञात हुआ है कि आपके पूर्वजों ने यहां जंगली झाड़ियां सफाई कराके नैनागिर क्षेत्र को प्रकाश में लाया था, फिर आपके द्वारा तो पूर्ण उद्धार हुआ है । पंच कल्याणक, गजरथ आदि बड़े मेले तो आपके प्रयत्न के सफल नमूने हैं । क्षेत्र की उन्नति करना आपका मामूली कार्य नहीं था बल्कि कठोर त्याग का फल था आपको बचपन में खुमान कहा करते थे और भविष्य में तो मान खोने वाले ही निकले । आपने मिती ज्येष्ठ सुदी ५ सं० १९८४ को द्रोण गिर में मुनि अनंतसागरजी और शांतिसागरजी महाराज क्षाणी से दूसरी प्रतिमा ली थी तब आपका नाम व० खेमचन्द रखा। मिती आषाढ़ बदी ८ सं० १६६५ में अंजड़ बड़वानी में मुनि सुधर्मसागरजी से ७ वी प्रतिमा ली थी। फिर सागर में माघ मास के पयूं पण पर्व सं० २००० में दशवी प्रतिमा धारण की थी । सं० २००१ से वर्णी गणेशप्रसादजी के संघ में रहकर जवलपुर में वीर जयन्ती पर वीर प्रभू के समक्ष क्षुल्लक दीक्षा ली और आपका नाम क्षु० क्षेमसागर रखा गया । आपने क्षुल्लक दीक्षा से ही केश लोंच करना चालू कर दिया था । वर्णीजी तो आपके चरित्र की प्रशंसा किया ही करते हैं ।