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दिगम्बर जैन साधु
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आपको निद्रा भी बहुत कम आती है, हमारा पूर्व में आपसे कई वर्षों तक सहवास रहा है, हम समय-समय पर जाकर गुप्त रीत्यानुसार परीक्षा किया करते थे, परन्तु जब कभी जाते थे तभी आप जाग्रत अवस्था में मिलते थे । विशेष कर आपका लक्ष्य श्रात्म ध्यान में अधिक रहता है |
गृहस्थों के चारित्र को समुज्ज्वल बनाने के लिये आप रात्रि दिवस चिन्तित रहते हैं, जहां कहीं आपका विहार होता है वहां पर श्रावकाचार का प्रचार काफी होता है और सच्चे सद्गृहस्थ बनाते हैं । इस गृहस्थागार में गृहस्थ धर्म को सम्पादन करनेवाली श्राविकायें होती हैं बहु भाग श्रावकाचार का इन्हीं पर निर्भर रहता है । उन्हीं को आप उचित शिक्षा देकर व्रतादि ग्रहण करा श्रावकाचार धर्म स्वीकार कराकर उन्हें सच्ची श्राविकाएं बनाते हैं ।
आपका लक्ष्य विशेष कर स्त्रियों को सदाचारिणी बनाने की ओर रहता है तथा उनके संयम, शील की रक्षार्थ सतत् प्रयत्न करते रहते हैं । आपका विहार अभी ४-५ वर्ष से मालवा और मारवाड़ तथा हाड़ोती प्रांत में हो रहा है यहां पर व्रत विधान क्रिया बहुत ही उच्च और आदर्श है तथा प्रायः सर्व व्रतों का भार स्त्री समाज पर निर्भर है उन्हीं के लाभार्थ आपने 'व्रत कथा कोष नामक ग्रन्थ अनेक शास्त्रों की खोज पूर्ण लिखा है, जो कि व्रत विधान करनेवालों को अवश्य एक वार देखना चाहिये । इत्यादि प्रयत्न आप गृहस्थों को आदर्श बनाने के लिये सदैव करते रहते हैं ।
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