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दिगम्बर जैन साधु
[ ४४५ इसके पश्चात् आपने सं० २०१२ को श्री रेशंदीगिर गजरथ के दीक्षा कल्याणक के दिन भगवान आदिनाथ के दीक्षा समय भगवान आदिनाथ के समक्ष मुनि दीक्षा धारण की तब उसी दिन मिती माघ सुदी १५ शनिवार को आपका नाम मुनि आदि सागर रखा गया ।
मुनि श्री नेमिसागरजी महाराज
सरल स्वभाव, शान्तचित्त, शरीर से कृश किन्तु तपस्तेज से दीप्त, हृदय के सच्चे, लंगोट के पक्के, अपनी परिस्थिति अनुकूल चलने वाले, प्रयोजन वश बोलने वाले, प्रतिष्ठा,वैद्यक, ज्योतिष, गणित, मंत्र, तंत्रयंत्र, संगीत एवं नृत्यकलाओं में शिरोमणि, धर्मशास्त्र के पूर्णज्ञाता, मधुर किन्तु ओजस्वी वाणी में बोलनेवाले वक्ता, पण्डितों के पण्डित, सफल साधक, जीव मात्र के प्रति अहिंसा का भाव रखनेवाले, न किसी के अपने न पराये, न सपक्षी न विपक्षी, स्वाभिमान निर्भीकता से धर्म साधन करनेवाले विलासों एवं भोगों से अछूते, इन्द्रियों का दमन करने वाले, कषायों का निग्रह करने वाले, समाज के गौरव एवं देश के अनमोल रत्न तपोनिधि अध्यात्म योगी श्री १०८ मुनि नेमिसागरजी का जन्म मंगलमय एवं परम पवित्र माता श्री यशोदा देवी की पुनीत कुक्षि से पिता श्री मुन्नालालजी के पुत्र के रूप में विक्रम संवत् १९६० के फाल्गुन शुक्ला द्वादशी रविवार को पठा (टडा ) ग्राम में
आपने बाल्यकाल से ही बावा गोकुलप्रसादजी. पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी एवं पूज्य मोतीलालजी वर्णी के सान्निध्य में रहकर उक्त गुरुजनों की कृपा द्वारा संवत् १९७८ में पूज्य पिताजी का स्वर्गारोहण हो जाने के कारण घर पर ही रहकर अनेकों विद्याओं के अथाह वारिधि बने ।
आपका बचपन का नाम हरिप्रसाद जैन था । आपने विवाह का परित्याग कर वालब्रह्मचारी व्रत धारण किया । ८ वर्ष की आयु में पाक्षिक व्रतों तथा १५ वर्ष की आयु में नेण्ठिक श्रावक के रूप में दूसरी प्रतिमा ग्रहण की । सन् ५६ में इन्दौर आए । वि० सं० १९६६ में माघ कृष्णा प्रतिपदा गरूवार मु० पटना पो० रहली जिला सागर के जलयात्रा महोत्सव पर श्री १०८ मुनि पदमसागरजी द्वारा सप्तम प्रतिमा ग्रहण की तथा आपका नाम रखा गया श्री विद्यासागर ।
फाल्गुन शुक्ला ३ सोमवार संवत् २०१६ में म०प्र० के देवास जिलान्तर्गत लुहाखा नामक ग्राम में श्री पंचकल्याणक महोत्सव पर दीक्षा कल्याणक के समय श्री १०८ मुनि प्राचार्य योगेन्द्रतिलक शान्तिसागरजी महाराज द्वारा आपने ११ वी प्रतिमा धारण की और नाम पाया श्री १०५ क्षुल्लक