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मुनिश्री वर्धमानसागरजी ( दक्षिण )
द्वारा दीक्षित शिष्य
श्री वर्धमानसागरजी
दिगम्बर जैन साधु
ए
मुनिश्री ने मिसागरजी मुनि श्री समन्तभद्रजी मुनि श्री आदिसागरजी
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मुनिश्री नेमिसागरजी महाराज
पूज्य मुनिश्री ने मिसागरजी ने गृहस्थ अवस्था में सन् १९२४ में ५० साल पहिले आचार्य श्री १०८ शान्तिसागरजी के पास आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत लिया था । क्षुल्लक दीक्षा श्री १०८ वर्धमान सागरजी के पास ली थी । सन् १६५८ में श्री १०८ शान्तिसागरजी महाराज के जेष्ठ भ्राता श्री १०८ मुनि श्री वर्धमानसागरजी महाराज के पास निर्ग्रन्थ दीक्षा ली । आप मराठी, कन्नड़ हिन्दी, भाषा जानते हैं, पढ़ते हैं । पिताजी का नाम सावतापा है और गृहस्थावस्था का महाराज का नाम नेमाराणा है । सम्मेद शिखरजी की यात्रा सम्पन्न कर चुके हैं। मंद कषायी मितभाषी हैं परिणाम शान्त हैं। मुनि आचार पालन में दक्ष हैं। संघ में महाराज श्री ही गुरु हैं । सब तीर्थ स्थलों की वंदना गृहस्थावस्था में की, तीस चौवीसी, भक्तामर, कर्म दहन आदि व्रत किये । बचपन से ही अत्यन्त शान्त भद्र परिणामी हैं ।