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दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री समन्तभद्रजी
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श्री १०८ मुनि समन्तभद्रजी महाराज का गृहस्थ अवस्था का नाम देवचन्द्रजी है । आपका जन्म २७-१२-१८९१ में करमोले ( सोलापुर ) में हुआ। आपके पिता श्री कस्तूरचन्द्रजी थे व माता कंकुबाई थी । आपने सोलापुर में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की । बम्बई में निवास करके आप स्नातक (बी० ए० ) हुए। आप उच्चकोटि की धार्मिक शिक्षा की प्राप्ति के लिए जयपुर गए । आप विषय वासनाओं से दूर रहे व बाल ब्रह्मचारी हैं। आपने आत्मकल्याण हेतु १९५२ में श्री १०८ मुनि वर्धमानसागरजी से मुनिदीक्षा ली।
आपने कारजा, सोलापुर, एलोरा, खुरई आदि बारह स्थानों पर गुरुकुलों की
स्थापना की ( जो आज भी समाज में विधिवत् अपना कार्य कर रहे हैं ) क्योंकि आपकी यह मान्यता है कि गुरुकुल शिक्षा की पद्धति ही असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर, ले जाने में समर्थ है। आपने सन् १९१८ में कारंजा में महावीर ब्रह्मचर्याश्रम नाम से गुरुकुल की स्थापना की । सन् १९३४ में कुम्भोज में पांच छात्रों से गुरुकुल की स्थापना की थी आज उसमें ५०० छात्र अध्ययन रत हैं ।
मुनि श्री समन्तभद्रजी स्वयं एक सजीव संस्था हैं । वे शारीरिक और मानसिक तथा आध्यात्मिक दृष्टियों से स्वस्थ रहकर सहस्र वसन्त देखें । उनके निर्देशन में एक नहीं अनेक गुरुकुल खुलें जिससे देश और समाज, शरीर से आत्मा की ओर, भौतिकता से मानवता की ओर बढ़ने में समर्थ हो सके।
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