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दिगम्बर जैन साधु
[ ४२५ क्षुल्लक जयकीर्तिजी महाराज
न० पवनकुमारजी का जन्म अक्कलकोट में श्री बाबूरामजी की धर्मपत्नी श्री पद्मावति की पवित्र कुक्षि से सन् १९३४ में हुआ था।
आपने क्षुल्लक दीक्षा मंगसिर सुदी सप्तमी को ली एवं कुछ समय के बाद आपने प्राचार्य श्री से पुनः मुनि दीक्षा ली।
आपने आयुर्वेद पर ५ पुस्तकें लिखी हैं। अमोलक माणिक्यमात्रा, योग प्रदीप, आहारदान आदि पुस्तकों का लेखन कार्य किया है । आप निरन्तर लेखन आदि कार्य में लगे रहते हैं।
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क्षुल्लिका श्री चन्दनमती माताजी
कापशी ( कोल्हापुर ) दक्षिण में श्रेष्ठी श्री तांतत्पाजी की धर्मपत्नी श्री गोदावरी देवी की कूख से मनोरमादेवी ने जन्म लिया था। आपकी शिक्षा कन्नड़ भाषा में हुयी। १६ वर्ष की उम्र में सोलापुर में आपकी शादी हुई । विवाह के कुछ महिने वाद ही पति का वियोग हो गया। आपने अपने जीवन को मोड़कर धर्म में चित्त लगाया तथा श्री पायसागरजी महाराज से जन्म स्थल पर ही क्षुल्लिका दीक्षा ली। आपने अपना विहार अक्कूतकाटे, डूण्डी, मंगलूर, निपानी, मालेगांव, दिल्ली आदि स्थानों पर गुरुवर्य के साथ किया तथा अन्त में धर्म ध्यान करते हुए शरीर को छोड़ा । आप कन्नड़ भाषा की अधिकारी साध्वी थीं । घन्टों मातृ भाषा में धारा प्रवाह प्रवचन देती रहती थीं। *