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दिगम्बर जैन साधु
प्राचार्य श्री अनंतकीर्तिजी ( महाराज )
महाराष्ट्र प्रान्त के शोलापुर के समीप कड़वी नामक स्थान में जन्म लिया । आपका परिवार धर्मश्रद्धा से बड़ा ही प्रभावित था । वचपन के संस्कारों ने श्रापको मुनि दीक्षा धारण करा दी ।
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आपके दीक्षा गुरु श्री श्राचार्य पायसागरजी महाराज थे। दीक्षा स्थल अक्कोल था । आप वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध एवं अनुभवी तपस्वी थे । आपके सम्बन्ध में ऐसा ज्ञात हुवा कि मुरेना ( ग्वालियर ) में आपका पैर जल गया था । उस समय असह्य पीड़ा होने पर स्वभाव से श्रापने सहन की । आप घन्टों लगातार कठोर तप किया करते थे । आपके प्रवचनों में भारी भीड़ होती थी तथा जनता पर काफी प्रभाव पड़ा ।
अन्त में समाधिमरण करके नश्वर शरीर को त्याग दिया । पर आपने अन्तिम समय तक व्रतों का पूर्ण रूप से पालन किया । धन्य है ऐसे परीषहजयी मुनिराज ।
आर्यिका चारित्रमतीजी
श्री चलनादेवी का जन्म वि० सं० १९६५ में बेलगांव में हुवा था | आपके पिता जागीरदार थे । पिताजी का नाम श्री संगप्पाजी तथा माताजी का नाम बाकदेवी था । शिक्षा सामान्य ही रही, आपके ३ पुत्र पुत्रियाँ थीं । पति एवं तीनों बच्चों के स्वर्गवास होने से आपके मन में वैराग्य आया तथा आचार्य श्री पायसागरजी के प्रवचनों ने आपके अन्दर ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि आपने परिवार को छोड़कर व्रती जीवन जीना शुरु किया । वि० सं० २०१७ में आर्यिका दीक्षा ली । आपने श्रात्म साधना करते हुए परिणामों को विशुद्ध कर चारित्र रथ पर आरूढ़ होकर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया ।