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दिगम्बर जैन साधु धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत श्री सूरजमल गांधी ने श्री १०५ परमपूज्य गुरुवर्य श्री वनकीतिजी महाराज से पावागढ़ (गुजरात) में सपत्नी आजन्म ब्रह्मचर्य-व्रत सं० २०११ में लिया था।
संसार की असारता जानकर तथा आत्म कल्याण के निमित्त घर की माया ममता छोड़कर श्री १०८ आचार्य विमलसागरजी महाराज से सं० २०२४ आसोज सुदी १० के दिन कोल्हापुर ( महाराष्ट्र ) में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की । आपने अपने प्रात्म कल्याण के लिये सं० २०३६ मंगसर सुदी २ को परमपूज्य श्री १०८ विनयसागरजी से लोहारिया में मुनिदीक्षा ग्रहण की।
अब तक पाप क्रमशः कोल्हापुर, फलटन, हुबली, इन्दौर, घाटोल (बांसवाड़ा) लोहारिया, रामगढ़, सागवाड़ा गलीयाकोट, सोजीत्रा, मांडवी ( सूरत ) अथुणा धरियावद, पारसोला, खांदु में चातुर्मास कर चुके हैं तथा जहाँ-जहाँ पापका विहार एवं वर्षायोग हुआ। वहां-वहां आपने जैन धर्म के शिक्षण हेतु विद्यालयों की स्थापना कराई और धार्मिक ग्रन्थों का स्वाध्याय कर जनता को लाभ देते रहे । वि० सं० २०३८ मंगसिर बदी ५ को सागवाड़ा में आपका स्वर्गवास हुआ।