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दिगम्बर जैन साधु
मुनिश्री वर्धमानसागरजी महाराज
आपका जन्म ई० सन् १९१४ में खडी ग्राम जिला अहमदनगर महाराष्ट्र में हुवा । गृहस्थावस्था का नाम चन्द्रकान्तजी था । आपने मुनि श्री ऋषभसागरजी से सातवीं प्रतिमा के व्रत ग्रहण किए। मुनि दीक्षा ई० सन् १९८१ में प्रा० विमलसागरजी से ली। आप शान्त स्वभावी, सदैव श्रात्मकल्याण हेतु धर्मध्यान में लगे रहते हैं ।
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मुनिश्री समाधिसागरजी महाराज
श्री परमपूज्य १०८ दिगम्बर मुनिराज श्री समाधिसागरजी महाराज का जन्म वि० सं० १९५२ वैशाख सुदी ३ दाहोद (गुजरात ) में दशा हुमड़ जातीय श्री जयचन्द्र गांधी के घर हुआ था । श्रापकी माताजी का नाम जीवीबाई था, आपका बचपन का नाम श्री सूरजमल था । माता श्री का स्वर्गवास तब हुआ जब आपकी उम्र सिर्फ एक मास की थी । श्रापने दाहोद के विद्यालयों में ही गुजारती तथा हिन्दी का अभ्यास इन्दौर, ईसरी श्राश्रम व बड़वानो में किया ।
आपका विवाह दाहोद निवासी सर्राफ सुन्दरजी की सुपुत्री मोतीबाई के साथ हुआ । श्रापके तीन पुत्र तथा चार पुत्रियाँ हैं आपकी धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा प्रारंभ से ही थी । इसी का परिणाम है कि आपने अपने गृहस्थ जीवन में ही दाहोद में दो मंदिरजी का निर्माण कराकर पंच कल्याणक प्रतिष्ठा कराई तथा छात्रावास की स्थापना की और निवास में महावीर चैत्यालय बनवाया था ।
आपने पच्चीस वर्ष तक पुराने मंदिरजी तथा पाठशाला का बहीवट निःस्वार्थ सेवाभाव से चलाया आप छः वर्ष तक दाहोद नगरपालिका तथा तीन वर्ष तक स्कूल बोर्ड के और नागरिक बैंक के सदस्य रहे । आपका कपड़े का व्यापार था । आपने अपने गृहस्थ जीवन में विभिन्न कार्यों के लिये लगभग दस हजार का दान किया । आपने तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरजी की आठ वार तथा अन्य सभी तीर्थों की यात्राएं की हैं।