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________________ ३८० ] दिगम्बर जैन साधु मनिश्री पार्श्वकीर्तिजी महाराज आपका जन्म जिला बांसवाड़ा तहसील गरी के लोहारिया गांव जाति नरसिंहपुरा में मातेश्वरी कुरीदेवी की कूख से संवत् १९७६ में हुआ । आपका नाम जवेरचन्दजी व पिताजी का नाम दाड़मचन्दजी था । आपकी माताजी भद्र परिणामी व दयालु थी । व्रत उपवास करती थी आपकी माताजी में एक यह विशेषता थी कि प्रत्येक सन्तान की उत्पत्ति के समय उपवास रखती थी । आपके पिताजी गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । आपने १५ साल की अवस्था में व्यापार करना शुरू कर दिया था । आपकी धर्म पत्नी का नाम श्रीमती अमृतवाई है । आपकी इच्छा शुरू से ही दीक्षा लेने की थी। आपने ३८ साल की अवस्था में मुनि श्री नेमिसागरजी महाराज बम्बई वालों से ब्रह्मचर्य व्रत लिया। संवत २०३१ ता० २३-२-७५ को श्री सम्मेदशिखरजी में आचार्य श्री विमलसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ली । उसके बाद घाटोल में श्री १०८ धर्मसागरजी के शिष्य दयासागरजी से ऐलक दीक्षा ली। आपकी यह इच्छा थी कि मैं मुनि दीक्षा प्राचार्य श्री विमलसागरजी के द्वारा सोनागिरजी में लू। इस भाव के कारण आप ८ माह में पन्द्रह सौ मील चलकर आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज के चरणों में सोनागिरी आये । यहां आकर आपने आचार्य श्री से संवत् २०३६ श्रावण सुदी ६ को चन्द्रप्रभु प्रांगण में मुनि दीक्षा ली। तब से आपको मुनि पार्श्वकीर्तिजी के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। मुनिश्री श्रवणसागरजी महाराज आपका जन्म सन् १९४८ में नरसिंहपुरा जाति में प्रतापगढ़ में हुवा था। आपका विवाह भी. हुआ था। आपके दो पुत्र १ पुत्री भी थो । पत्नी, पुत्र, पुत्री सभी का स्वर्गवास हो गया। संसार की ऐसी स्थिति को जानकर आपके मन में वैराग्य आया फलस्वरूप आचार्य विमलसागरजी से मुनि दीक्षा . लेकर आत्म साधना रत हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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