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दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री शीतलसागरजी, मुनिश्री पार्श्वसागरजी, मुनिश्री ऋषभसागरजी, मुनिश्री महेन्द्रसागरजी, मुनिश्री आनंदसागरजी, मुनिश्री पद्मसागरजी, मुनिश्री हेमसागरजी, क्षु० श्री रविसागरजी, क्षु० श्री मानसागरजी, क्षु० श्री पूर्णसागरजी, आर्यिका नेमामतीजी, वीरमतीजी, क्षु० निर्मलमतीजी।
____ आप श्री ने सम्यक्त्व की भावना से परिपुष्ट संघ के साथ श्रावकों को धर्मामृत पान कराया। निर्मल रत्नत्रय का मार्ग भव्यों को दिखाते हुए धर्म की ज्योति जगाने का आप जैसा साहस विरले ही साधकों में पाया जाता है।
सुलभाधर्म वक्तारो यथा पुस्तक वाचकः । ये कुर्वन्ति स्वयं धर्म विरलास्ते महीतले ।।
मुनिश्री वीरसागरजी महाराज
श्री १०८ मुनि वीरसागरजी का गृहस्थावस्था का नाम मोहनलालजी था । आपका जन्म कार्तिक सुदी दशमी, विक्रम संवत् १९५१ को आज से ८० वर्ष पूर्व कटेरा झांसी उत्तरप्रदेश में हुआ। आपके पिता का नाम श्री मिश्रीमलजी था, जो घी का व्यापार किया करते थे । आपकी माता श्रीमती रूपावाईजी थी आप गोलालारी जाति के भूषण हैं । आपकी लौकिक शिक्षा एवं धार्मिक शिक्षा साधारण ही हुई । आप बाल ब्रह्मचारी रहे । आपके पांच भाई और तीन बहिनें थी।
सत्संगति एवं उपदेशश्रवण से आपमें वैराग्य भावना जागृत हुई एवं आपने विक्रम संवत् २०२१ में बड़वानी में मुनि दीक्षा ले ली। आपने बड़वानी, कोल्हापुर, सोलापुर, ईडर, सुजानगढ़ आदि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्मवृद्धि की । आपने नमक, घी, तेल, दही का त्याग कर रखा है।