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दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लकश्री शीतलसागरजी महाराज
गोपीलाल और तुलसादेवी अग्रवाल दोनों को अच्छी तरह मालूम था कि उनकी संतान शादी से इंकार कर रही है । पर सरखंडिया ( राज.) में हलचल तो तब मची जब लोगों ने सुना कि बद्रीलाल वैरागी हो गया। 'कारण' बद्रीलाल को कहीं से कुछ जुटाना नहीं पड़ा। उसको किस्मत ने खुद उसे सम्मेदाचल के पादमूल में विराजमान गुरुवर प्रा० श्री महावीरकीतिजी म० के चरणों तक पहुंचा दिया। पूज्य श्री ने आश्विन शु० ८ सन् १९५५ को जब दीक्षार्थी नवयुवक को उपकृत करने की स्वीकृति प्रदान की तब सुकुमार युवक के बाहों की मसें ठीक से
भीगी भी न थी । जन्म और दीक्षाकाल में फासला मामूली ___
सा था । वि० सं० १९८९ आषाढ़ शु०६ को इस पृथ्वी पर आंख खोली और सन् ५५ में दीक्षा । पर वैराग्य के लिये उमर कभी बन्धन कारक नहीं हुई । दीक्षार्थी की मुराद पूरी हुई । आचार्य श्री ने आपका नाम 'शीतलसागर' रखकर जिनधर्म की सेवा करने का आदेश दिया । शास्त्रों का गहन अध्ययन करके आपने सदुपदेश दृष्टान्त माला, भद्रबाहुचरित, गौतम चरित्र लिखे तथा प्रा० महावीरकोति स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करने की दिशा में अग्रसर हैं । पाठशालाओं की स्थापना शिक्षण शिविर यत्र तत्र लगाते रहते हैं। अवागढ़ में आ० महावीर कीर्तिस्तम्भ तथा धर्मप्रचारणी संस्था की स्थापना करके श्रावकों का मार्गदर्शन किया। फिरोजाबाद जयपुर खानियां, नागौर, डेह, सुजानगढ़, लाडनू, हिंगोनिया, झाग, मौजमाबाद, सांगानेर, चन्दलाई, निवाई, टोंक, बनेठा, नैनवा, अवागढ़ एटा में चातुर्मास कर भव्यों को धर्मामृत पान कराया। पू० प्रा० श्री शिवसागरजी म० आ० श्री ज्ञानसागरजी महाराज, मुनि श्री पार्श्वसागरजी महाराज के साथ भी चातुर्मास करके आपने अपनी वैराग्य भावना को दृढ़ किया है।